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अनुसन्धान-६९
जैसे हो गुरुदेवजी महैमा कही म जाई,
चरण-सरण मैं निति रहूं आप ही सदा सहाय... ७०
(जेमणे कामनाना दळ गगने चडावी दीधां छे ओवा गोरखनाथ जेवा जितेन्द्रिय, त्याग अने वैराग्यमां कायम सवाया, गोपीचंद जेवू ज्ञान जेमां छे अने कबीर जेटला प्रख्यात थया छे अवा गुरुजीनो मेहिमा कथी शकाय अवो नथी, हुं आपना चरणमां अने शरणमां नित्य रहुं अने आप सहाय करो अवी अरज करुं छु.)
मेरु अडग ज्युं जान पवन ज्यूं लिखै न लोई, सूरज तेज समान चंद्र ज्यूं सीतल सोई, . गहरां ग्यांन गंभीर कलपतरु काम ज हरि हैं, बसुधा क्षमावंत सुख सबहिनकू करि है, गहरे जांन समुद्रसे है रतन को खान,
जैसे ही रतन जु आप मैं तिन्है करुं बाखान... ७१ (मेरु पर्वत सम अडग, लोको लखी के पकडी न शके ओवा पवन जेवा, सूरज समान तेजस्वी, चन्द्र समान शीतळ, ऊंडा ज्ञानथी गम्भीर, कल्पतरु समान, धरती सम क्षमावंत, तमामने सुख आपनारा, समुंद्रथी पण ऊंडेरा, रत्नोनी खाणमां होय अनाथी पण वधु रत्नो आपनामां समयां छे अटले वखाण करूं छु.) झूलणां -
गुरु महैमा माहा अगाध भाई, काहा जीव बुधी परमानहै जी, कोई गाई कहै कोई पाई कहै, कोई आपणा भाव जणाईहै जी, काहा आदि रू अंतर मध नहि, सब गुरुकुं भेट चढाईहै जी, दासानुदास करजोड कहै, भव बूडत आप सहाईहै जी... ७२
(गुरु महिमा तो अगाध छे, भाई, जीव बुद्धि शुं प्रमाण आपी शके? कोई गाईने कहे, कोई मेळवीने कहे, कोई पोतानो भाव व्यक्त करे, क्यांय आदि, मध्य अने अंत थी बधुं ज गुरुने भेट रूपे चडावी दीधुं छे, दासानुदास हाथ जोडीने कहे छ के भवसागरमां बूडतांने सहाय करनारा आप ज छो.)