Book Title: Anusandhan 2011 06 SrNo 55
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ अनुसन्धान-५५ सावत्थिअपत्थिवाण सत्थ --- त्थयमणिजिअसत्तु, पवित्तगुत्तसयवत्तपंतिप्पबोहणुत्तमसयवत्तमित्तदित्तयमणंतसत्तमजिअं । हत्थिणाउरणयरवइविस्ससेणणरवइपुत्तं संतितित्थयरं । पुण पणिवयामि पणयणयणिम्मिअ अमिअविणयपरिअरिओ मुणिअणगणमणिसमाणमणणं संमाणिअमसमाणणिउणेहिं णिम्मयणिव्वुइ णिव्वुइसाहणयं ॥११॥ वेढो ॥ अजिअं विजयातणयं अभिभूअरमातणयं । संतिं पुणो वि जिणं मणम्मि समरेमो ॥१२॥ रासानंदिअं ॥ अजिअ-संतीहिं जिणेहिं भणिअवयणगहणमणा अत्थि जो मणुअगणो सो ण कयावि हु हवइ विमणा । जो पुण अनिउणो तव्वयणअणुसरणं ण पकुणेइ पमणा सो पावइ अइबहुअं बहुसो दुक्खं णिरयगमणा ॥१३॥ चित्तलेहा ॥ भत्तिजुत्तअत्तसत्तकित्तपत्तवित्तसत्तवित्तसरण उत्तिमुत्तिमुत्तिजुत्तिपंत्तिसुत्तभंत्तिरत्तसरण । अत्तपत्तगुत्तसत्तसत्तिदित्तदित्तिजुत्त अजिअ सव्वसव्वभव्वनव्वनव्वभव्वपव्व संति सव्वणाह पुण पइस सिवं मे ॥१४॥ सयलसुहाणं विहायगाणं तमतिमिरक्खयपायणायगाणं । अजिअ-संति तित्थनायगाणं अइपणयाण य देवणायगाणं ॥१५॥ कुसुमलया ॥ विहणउ जिणाण वयणं मह दुरिआणि अमिअवयणं ।। मह गव्वकयव्वयणं कुण य गणविरइआवयणं ॥१६॥ भुअगपरिरिंगिअं ।। तेअमईहिं भाविअरई जय अजिअवई वेअमईहिं भाविअरई जय अजिअवई । भेअमईहिं भाविअरई जय अजिअवई गेअमईहिं भाविअरई जय अजिअवई ॥१७॥ खिज्जिअयं ॥ तित्थवइणिसावई जय जयइवई संती विव सहगई हणिअरइवई ।

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