Book Title: Anusandhan 2005 06 SrNo 32 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ June-2005 उदयरत्नजी कृत जोगमायानो सलोको सं. डो. निरंजन राज्यगुरु पू. श्री आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज साहेबना विहार दरम्यान वढवाण (जि. सुरेन्द्रनगर) खातेथी प्राप्त थयेल आ रचनानी झेरोक्स नकल परथी आ वाचना तैयार करी छे. विक्रम संवत १७७० ना पोष सुदी सातमना रोज सर्जन थयुं अने वि.सं. १८७१ आसो सुदी ४ ना रोज लहिया मुनि गुणरत्नजी द्वारा जेनुं लेखन थयुं छे ते 'उदयरत्नजी कृत जोगमायानो सलोको'नी कुल पांच पानांनी हस्तप्रत बन्ने बाजु लखायेली छे. ११" x ६" नी साईझमां दरेक पेइज उपर १३ के १४ पंक्तिओ लखाई छे. नवमा छेल्ला पेज उपर पांच पंक्ति छे. आ रीते कुल ७८ कडीनी रचना १११ पंक्तिओमां लखायेली छे. सर्जक कवि उदयरत्नजीः पार्श्वनाथ प्रभुना गणधरनी परम्परामां रत्नप्रभसूरि थया, तेमना ३८ मी पाटे देवगुप्तसूरि थया. देवगुप्तसूरिना शिष्य कक्कसूरि मूळ उपकेशगच्छमांथी नीकळी तपागच्छमां भळेला अने राजविजयसूरि नाम स्वीकारेलं. तेमना शिष्य रत्नविजयसूरि पछी शिष्योना नाम पाछळ 'रत्न' शब्द शरु थयो. आ रीते रत्नशाखामां थयेला कवि उदयरत्नजीना गुरुनुं नाम शिवरत्नसूरि हतुं. कविश्री उदयरत्नजीओ संवत १७७०मां बारेजामां शरु करेला अने खेडा गामे पूर्ण करेला 'श्री भावरत्नसूरि प्रमुख पांच पाट वर्णन गच्छ परम्परा रास'मां आ समग्र माहिती आपवामां आवी छे. । जै.गू.क. भाग ९ पृ. .९५ ] उदयरत्नजी खेडाना रहीश हता अने तेमनुं अवसान मियांगाममां थयु एम कहेवाय छे. तेओश्रीने शृंगाररसभरित 'स्थूलिभद्र नवरसो' लखवाने कारणे आचार्ये संघबहार काढेला, पछी 'नववाड ब्रह्मचर्य'नी रचना करतां फरी प्रवेश मळ्यो एम नोंधायुं छे. खेडाना रत्ना भावसार नामना कविओ उदयरत्नजी पासे काव्यशास्त्रनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 118