Book Title: Anekant 2016 07
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 6
________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 संपादकीय 5 कुण्डलपुर महामस्तकाभिषेक यह सर्वविदित तथ्य है कि अपनी मनमोहक छटा के कारण जहाँ कुण्डलपुर सहज ही प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है, वहाँ दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र पर विराजमान तथा बड़े बाबा के नाम से विश्वप्रसिद्ध भगवान् आदिनाथ की मनोज्ञ प्रतिमा भावक भक्तों की भक्ति को सदा से प्रभावित करती रही है। जो एक बार इस प्रतिमा का दर्शन कर लेता है, वह बार-बार वहाँ जाता रहता है तथा उसके मन में उसे सदा निहारने की भावना होती रहती है। सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज का यह पावन तीर्थक्षेत्र म.प्र. के दमोह मण्डल में मुख्यालय से लगभग 35 किमी. की दूरी पर समुद्रतल से 3000 फीट ऊँचे कुण्डलाकार गिरिशृंखला में स्थित है। यहाँ विराजमाल बड़े बाबा की प्रतिमा कभी चिह्न न होने के कारण भगवान् महावीर की मानी जाती थी, किन्तु है भगवान् आदिनाथ की । इसे अब एक मत स्वीकार कर लिया गया है। वयोवृद्ध लोगों के मुख से सुना है कि यह प्रतिमा कभी गाँव वट (विराट्) की मूलनायक प्रतिमा थी । वहाँ के मन्दिर के खण्डित हो जाने पर इस कुण्डलाकार पर्वत पर विराजमान की गई थी। प्रतिमा के विषय में अन्य भी अनेक अतिशयकारी किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। इसमें किसी भी जैन की असहमति नही हो सकती है कि प्रतिमा अतिशयकारी थी और आज भी उसका अतिशय वर्धमान ही है । कुण्डलपुर क्षेत्र पर विराजमान वि.स. 1183 (1126 ई.) की प्रतिमा के कारण क्षेत्र की प्राचीनता असंदिग्ध है। इतिहास बताता है कि पन्ना राज्य के महाराजा छत्रसाल को जब आततायियों के कारण पन्ना नगर छोड़कर भागना पड़ा था तो वे कुण्डलपुर के जंगलों में घूमते रहे। वहाँ उनकी मुलाकात ब्र. नमिसागर से हुई। ब्र. जी ने उनसे जीर्णोद्धार हेतु धन मांगा। महाराजा छत्रसाल ने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए कहा कि यदि मुझे पन्ना का राज्य वापिस मिला तो मैं

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