Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 8
________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 कार्य और साहित्यिक गतिविधियों को सातत्य बनाये रखने में एक चेतनापुंज साबित हुआ है। वीर सेवा मंदिर के सभी पदाधिकारी महानुभाव मेरी वरिष्ठता को पूर्ण सम्मान देते हुए युवकोचित पुरुषार्थ करते रहने का साहस मंत्र देते रहते हैं। इस भवन को विशिष्ट-पुण्य-पुरुष-आत्माओं का आशीर्वाद प्राप्त है, जिससे ऊर्जस्वी पुण्य-वर्गणाएं यहाँ सदैव व्याप्त रहती हैं। आयें ! वीर सेवा मंदिर - जिस उद्देश्य और ज्ञान-यज्ञ के लिए प्रतीक्षित है, उसमें हम सभी अपनी सहभागिता देकर पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार' साहब की इस भावना को मूर्तवन्त करेंगें जो उन्होंने 'मेरी भावना' में व्यक्त की है- "घर घर चर्चा रहे धर्म की। ****** लेखकों के लिए निर्देश अनेकान्त में प्रकाशनार्थ शोधालेख भेजते समय निम्नांकित बिन्दुओं का पालन विद्वान लेखक अवश्य करने की कृपा करेंगे। १.शोधालेख अप्रकाशित और मौलिक हो, इस आशय का प्रमाणपत्र स्व हस्ताक्षर सहित प्रेषित किया जावे। २. अनेकान्त में प्रकाशनार्थ भेजा गया शोधालेख अन्य किसी पत्रिका में तब तक न भेजें जब तक उसकी अस्वीकृति की सूचना आपको न मिल जावे। भेजी गयी रचना के प्रकाशित होने में ६ माह से १ वर्ष तक लग सकता है। ३. आलेख का सारांश, कुछ पंक्तियों में लेख के प्रारंभ में अवश्य देवें तथा आलेख कम्प्यूटर टाइप हो या ई-मेल द्वारा भेज सकते हैं। यदि हस्तलिखित हो तो सुलेख में मूल कापी हो। आशा है उक्त विन्दुओं का पालन कर हमें सहयोग प्रदान करेंगे।। - संपादकPage Navigation
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