Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 7
________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 पवित्रता और गौरव एक मंदिर से कम है? मैं अपने को भाग्यशाली मानता हूँ कि इस 'ज्ञान-मंदिर' का माली बनकर ज्ञान की इस अमूल्य विरासत के पास बैठा हूँ। श्रद्धेय पण्डित पद्मचंद शास्त्री ने और इनके पूर्व पं. परमानंद शास्त्री ने वीर सेवा मंदिर के उत्कर्ष के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग किया। ___ आज वीर सेवा मंदिर में ज्ञान की अनन्य प्रतिमाओं (ग्रन्थों) की संख्या 8700, (जिसमें हस्तलिखित 167 ग्रन्थ शामिल हैं) तथा e-books के रूप में 12000 कुल लगभग इक्कीस हजार ग्रंथों से यह सुसज्जित है। इस विरासत को संरक्षित रखने का उत्तरदायित्व वीर सेवा मंदिर की कार्यकारिणी सदस्य, आजीवन सदस्यगण सम्हाले हुए हैं। जैन पुरातत्त्व मेंप्राचीन जैन मंदिरों, तीर्थों के साथ दुर्लभ प्राचीन ग्रंथ भी आते हैं जिनके संरक्षण की प्रगाढ़ भावना से मुख्तार साहब ने यह ज्ञान-महल खड़ा किया जो जैन इतिहास, ज्योतिष, आयुर्वेद, श्वेताम्बर जैन आगम ग्रन्थ, वैदिक, बौद्ध साहित्य के साथ ही दिगम्बर जैन ग्रंथों का कोषालय है। यह प्रबुद्ध पाठकों की प्रतीक्षा में 24x7 दरवाजे खोले रहता है। मेरे साथ इस ज्ञान-उद्यान में, एक युवा विद्वान डॉ. आलोक जैन, अहर्निश इसकी व्यवस्था व सम्हाल में लगे रहते हैं। 'समयसार' मर्मज्ञ श्री रूपचंद कटारिया-संयोजक शोध उपसमिति विद्वानों के प्रति वात्सल्यभाव रखने वाले, प्रायः वीर सेवा मंदिर आकर आ. कुन्दकुन्द साहित्य पर चर्चाएं कर, हमारे ज्ञान के गवाक्ष खोलते रहते हैं। वे कहते हैं कि घण्टों पं. पद्मचंद शास्त्री जी के पास बैठकर, जो आगम/ अध्यात्म पर विचार-विमर्श करते थे वह अब स्मृति शेष है। वीर सेवा मंदिर की अन्य गतिविधियों में- मुख्तार साहब स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन प्रतिवर्ष दिसम्बर/जनवरी माह में होता है जिसमें देश के वरिष्ठ और अधिकारी विद्वानों को आमंत्रित कर व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं। साहित्य-विक्रय केन्द्र- वीर सेवा मंदिर संस्थान द्वारा लगभग 25 ग्रन्थ प्रकाशित किये गये, जो विक्रय के लिए है। माँगपत्र आने पर 40 प्रतिशत कमीशन पर समूल्य उपलब्ध कराये जाते हैं। वीर सेवा मंदिर- मेरे जीवन-अनुभव की एक सशक्त-कड़ी बनी है। इसका प्रत्येक कार्य मेरे लिए एक पूजा के समान है। यह स्थान मेरे लेखन

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