Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 5
________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 पं.जुगलकिशोर मुख्तार स्मृतिदिवस२२ दिस.१९६२पर विशेष-संपादकीय वीर सेवा मन्दिर, पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार' और मैं - पं. निहालचंद जैन, निदेशक-वीर सेवा मंदिर बचपन से ही मैंने अपने पूज्य पिता जी को नहीं देखा, परन्तु अपने गाँव मड़ावरा में उनके द्वारा संजोयी गयी ‘अनेकान्त' (प्रकाशक-वीर सेवा मंदिर) की फाइलों को अवश्य देखा। पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद 1964 से 'अनेकान्त' की फाइलों को पढ़कर मैंने लेखनकार्य का श्री गणेश किया था। आज 50 वर्ष बाद उसी अनेकान्त को सजा-सँवार रहा हूँ। ___ अनेकान्त' की इस ज्ञान-यात्रा की एक लम्बी कहानी है। इसके प्रवेशांक में 'मुख्तार' साहब ने कुछ दोहे लिखकर, अन्तर्मन की कामना को प्रगट किया था। - अनेकान्त रवि किरण से, तम अज्ञान विनाश। मिटै मिथ्यात्व-कुरीति सब, हो सद्धर्म प्रकाश॥ सूख जाये दुर्गुण सकल, पोषण मिले अपार। सद्भावों का लोक में, हो विकसित संसार॥ 'अनेकान्त' मुख्तार साहब के प्राणों की संजीवनी बनी। इसका प्रारम्भ 1929 से हुआ एक मासिक पत्रिका के रूप में । आर्थिक कठिनाइयों के कारण आठ वर्षों तक बन्द रहने के पश्चात् 1938 में पुनः प्रकाशित हुई, परन्तु बीच बीच में 2 एवं 5 वर्ष के लिए बंद हुई। 1962 से 1975 तक द्विमासिकी रही तथा 1975 के बाद शोध त्रैमासिकी के रूप में नियमित प्रकाशन हो रहा है। वर्तमान के में इसके प्रधान संपादक- डॉ. जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर अध्यक्ष अ. भा. विद्वत्परिषद् हैं। दिगम्बर जैन समाज में 'अनेकान्त' ऐसी अकेली शोध-पत्रिका है, जो लेखकों को उनके शोधालेखों के प्रकाशन पर प्रोत्साहन स्वरूप एक सम्माननीय राशि भेंट करती है, ताकि इसकी गुणवत्ता में कहीं कोई कमी न आने पावे।Page Navigation
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