Book Title: Anekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir TrustPage 14
________________ अनेकान्त 61-1-2-3-4 है तो उसका अनर्थ होना अनिवार्य होता है। किन्तु उस अनर्थ को दूर करने का कार्य भी विवेकी और सिद्धान्तनिष्ठ विद्वान् करते रहे हैं । यही कार्य मुख्तारजी ने किया है। आ. वटकेर - कृत मूलाचार के नवम 'अनगार - भावनाधिकार' में उन कंदमूलफलों की प्रासुकता - अप्रासुकता पर विचार किया गया है, जो मुनियों के भक्ष्य - अभक्ष्य से संबंधित हैं । वे गाथायें हैं — 11 फलकंदमूलबीयं अणग्गिपक्कं तु आमयं किंचि । णच्चा अणेसणीयं ण वि य पडिच्छंति ते धीरा ।। 9 / 59 ।। अर्थात् फलानि कंदमूलानि वीजानि चाग्निपक्वानि न भवंति यानि अन्यदपि आमकं यत्किंचिदनशनीयं ज्ञात्वा नैव प्रतीच्छन्ति तं धीरा इति । दूसरी गाथा हे जं हवदि अणिव्वीयं णिवट्टिमं फासुयं कयं चेव । णाऊ एसणीयं तं भिक्खं मुणी पडिच्छंति ।। 9 / 60 11 अर्थात् यद् भवति अबीजं निर्बीजं निर्वर्त्तिमं निर्गतमध्यसारं प्रासुकं कृतं चेव ज्ञात्वाऽशनीयं तद् भैक्ष्यं मुनयः प्रतीच्छन्ति, अर्थात् जो वीजरहित है, जिनका मध्यसार निकल गया है जो प्रासुक किये गये हैं, ऐसे सब खाने के पदार्थो को भक्ष्य समझकर मुनि भिक्षा में ग्रहण करते हैं । यद्यपि सुधारवादी माने जाने वाले आ. मुख्तार जी ने इन गाथाओं का अपने लेखों में जो आशय व्यक्त किया है, उस पर आज भी मतभेद हैं; उनका इस संबंध में यह आशय हे कि "जेन मुनि कच्चे कंद नहीं खाते परन्तु अग्नि में एकाकर शाक भाजी आदि रूप में प्रस्तुत किये गये कंदमूल खा सकते हैं।" दूसरी गाथा का उनके अनुसार यह आशय है कि “प्रासुक किये हुए पदार्थों को भी भोजन में ग्रहण कर लेने का उनके लिए विधान किया गया है।" अन्त में मुख्तार जी ने कहा है कि "इसमें कोई संदेह नहीं रहता कि मुनि अग्नि द्वारा पके हुए शाक-भाजी आदि रूप में प्रस्तुत किये हुए कंदमूल खा सकते हैं। हां, कच्चे कंदमूल वे नहीं खा सकते।" ये मुख्तार जी के अपने व्यक्तिगत विचार हैं जिन्हें उन्होंने मूलाचार की उक्त गाथाओं से ग्रहण किया था । किन्तु अभी भी यह विचारणीय है क्योंकि जहाँ श्रावक भी आरम्भिक अवस्था में इनका पूर्णतः त्याग कर देता है, वहाँ मुनि को वह आहार में उन्हें कैसे दे सकता है और मुनि कैसे उन्हें ग्रहण कर सकता है? दूसरे निबंध 'क्या सभी कंदमूल अनंतकाय होते हैं?" में मुख्तारजी ने अदरक, गाजर, मूली, आलू आदि जमीकंद के विषय में विचार-विमर्श करके अन्तPage Navigation
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