Book Title: Anekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04 Author(s): Gokulprasad Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 4
________________ मध्यप्रदेश की जैन तीर्थस्थल : मक्सी पाना द्वारा निर्मित मिली हैं । मध्यप्रदेश में मध्यकाल की जैन मूर्तियां प्रचुर संख्या में मिलती है यहां के अनेक क्षेत्रों की स्थापना इसी काल में हुई। यह मालवा में परमार नरेशों का शाशन - काल था जो लगभग ५०० वर्षों तक रहा, प्रर्थात् ६५० ई० से १४५० ई० तक रहा। इस काल में प्रमुख नरेश मुंज, भोज, उदयसिंह, प्रजयपाल देव प्रमुख थे । इन सहिष्णु नरेशों ने जैन धर्म के उत्थान में अभूतपूर्व योगदान प्रदान किया । है, क्योंकि जैन पुरातत्व की दृष्टि से मध्यप्रदेश प्रमुख है; और किसी भी प्रदेश में जैन पुरातत्व इतनी प्रचुरता से नहीं मिलता है। यहाँ का जैन पुरातत्व प्रचुरता की दृष्टि से ही नहीं, ऐतिहासिक और कला की दृष्टि से भी महत्व पूर्ण माना जाता है। डा० वाकणकर ने मालवा से प्राप्त लगभग साढ़े तीन सौ जैन अभिलेख नये मोजे है। इसके प्रतिरिक्त, जैन तीर्थंकर मूर्तियों, शासन देवी-देवताओंों की मूर्तियों, मन्दिर, स्तंभ व हस्तलिखित ग्रन्थ व दुर्लभ जैन चित्रकला के प्रमाण इस मालव प्रदेश में प्रसंख्य भरे हुए हैं। मानया में जैन धर्म का प्रारम्भिक विकास ईसा पूर्व श्री शताब्दी में हो गया था, पद्यपि वह पौद्ध धर्म की भांति उन्नत न था। श्रीमती स्टीवेन्सन का मत है कि महावीर भगवान ने अपने समय मे उज्जैन में कठोर तपस्या की थी । इसमें रुद्र ने वाघा पहुंचाई थी । जैन परम्पराओं मे चंद प्रद्योत को जैन धर्मानुयायी कहा गया है और उसने जीवंत स्वामी की महावीर प्रतिमा उन विदिशा व दशपुर में स्थापित की थी। मालवा में प्रशोक के पौत्र संप्रति ने जैन धर्म का प्रत्यधिक प्रचार एवं प्रसार किया । इस शासक ने जैन प्राचार्य प्रार्य सुहस्ति से दीक्षा ग्रहण की थी । संप्रति मालवा में अनेक जैन मन्दिर बनवाये और मूर्तियों की प्रतिष्ठा की। उसने अनेक सघों को प्रश्रय दिया व तीर्थों में निर्माण कार्य किया। महेश्वर के निकट कसरावद उत्खनन से ई० पू० दूसरी शताब्दी का 'निघटस बिहारे दीये' एक पात्र पर लिखा मिला है, जिससे कतिपय इतिहासकार यह कहते है कि यह प्रमाणित हैं कि मालवा में मौर्यकाल में जैन निर्भय साधु निवास करते थे' (के.सी. जैन मालवा प्र : दि एजेज, पृ० ७८) । बाद के शुंग सातवाहनकाल में सिद्ध सेन दिवाकर ने मालवा मे जैन धर्म का प्रसार किया । गुप्त काल में जैन धर्म का केन्द्र विदिशा बना और यहां पर जैन तीर्थंकर प्रतिमाओंों की स्थापना की गई। यहां से ४थी- ५वीं शताब्दी की जैन तीर्थंकर प्रतिमायें रामगुप्त १. जैन सेमिनार १९७६ में पठित अपना शोबपत्र । ३. इंडियन हिस्टारिकल क्वार्टरली. भाग २५, ५०२२ । परमार काल में मालवा में जैन धर्म का पर्याप्त समुनत विकास हुआ। इसी काल में यहां का बग-मग पुरातस्य जैन धर्म मंडित हुमा यद्यपि परमार नरेश ब्राह्मण धर्म के अनुसरणकर्ता थे, परन्तु उन्होंने जैन धर्म के उत्थान व प्रसार में अभूतपूर्व योग प्रदान किया। परमार नरेशों ने जैन विद्वानों को राज्याश्रय दिया। उज्जैन व बारा नगरी जंन भाषायों के स्थायी स्थान बने और जैन भाषायों ने बहुत बड़ी संख्या में जनता को जैन धर्म की ओर श्राकर्षित किया। अनेकों जैन मन्दिर इस काल में बने और उनमें मूर्तियों की स्थापना की गई। इसी काल में अनेक जैन तीर्थो की नीव पड़ी और जैन प्राचार्यों ने पूर्व परम्परा से प्रसिद्ध चले आते हुए स्थानों की महत्ता बताई व वहां पर तीयों का समारम्भ हुधा । परमार नरेश वाक्पति मुंच ने जंन प्राचार्य प्रमितगति, महाक्षेत्र, पनपाल व धनेश्वर को राज्याश्रय प्रदान किया । परमार नरेश भोजदेव ने प्रभाचन्द्र सूनि को सम्मान प्रदान किया घोर धनपाल ने "तिलकमंजरी" ग्रन्थ रचा। सूराचार्य व देवमद्र ऐसे जैनाचार्य थे जिनका भोज के दरबार में मादर किया जाता था। साथ ही नयनन्दि, जिनवर गुरि अन्य जैन कवि थे, जिन्हें सादर प्राप्त था। मक्सी पाश्वनाथ का मन्दिर उज्जैन से ३० कि० मी० और इन्दौर से ७२ कि० मी० उत्तर दिशा में स्थित है। यह एक चमत्कारी जैन तीर्थ है जहां पर किवदति [शेष पृष्ठ १२ पर ] २. स्टीवेशन : दि हार्ट आफ जैनिज्म, पृ० ३३ ।Page Navigation
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