Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 257
________________ राजस्थान में जनधर्म व साहित्य : एक सिंहावलोकन २३५ रख लिया गया। कालान्तर में ऐमे मन्दिर ग्रंथालय बन पद्य उदघत मिलते है।' गये, जिन्हे शास्त्र भंडार कहा जाने लगा। जैनियों ने मालोच्यकालीन राजस्थान में रचित जैन हिन्दी साहित्य स्वरचित साहित्य को ही इन भडारो मे सुरक्षित नही का संक्षिप्त परिचयरखा अपि तु जैनेतर कवियो के साहित्य को भी सुरक्षित पूर्व पृष्टो में दी गई जैन शास्त्र भडारों की सूची से रखा । जिम समय भारत में विदेशी जातियों ने प्राकर ही यह विदित हो जाता है कि जैन विद्वानो को साहित्ययहाँ की संस्कृति और साहित्य को नष्ट करने का प्रयास रचना करने एवं उसे सुरक्षित रखने का शौक था। किया उस समय इन जैन भण्डारो ने भारतीय साहित्य राजस्थान मे जैनियो द्वारा साहित्य रचना प्राचीन समय को सुरक्षित रखने में बहुत बड़ा योगदान दिया । निस्सदेह मे ही होने लग गई थी। लेकिन प्राचीन जैन ग्रन्थो मे इन भण्डारों से भारतीय साहित्य की परम्परा अक्षुण्ण उनके निर्माण-काल, रचना-स्थान अदि का उल्लेख नही रही है। राजस्थान मे इन शास्त्र भण्डारों की संख्या मिलता, इसलिए ७वी शताब्दी से पहले के किसी भी प्रथ प्रत्यधिक है । इनकी सूची यहां दी जा रही है को, वह कहाँ रचा गया था ? निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। वी शताब्दी के प्राचार्य हरिभद्र सूरि राज(क) जैसलमेर के शास्त्र भण्डार स्थान के बहुत बड़े विद्वानों में से है जिन्होंने घूर्ताख्यान १. बृहद् जन भण्डार-स्थापित १४४० ई० । की रचना चित्तौड़ मे की। जन विद्वानों ने संस्कृत, प्राकृत, २. डूगरसी भडार । अपभ्रंश तथा आधुनिक भाषामो मे अपनी रचनाएँ की ३. करतार गच्छ का पचायती भंडार । है। १३वीं-१४वी शताब्दी से जैन विद्वानों की रचनाएं ४. तपगच्छ भंडार । गुजराती मिश्रित राजस्थानी में तदुपरान्त शद्ध हिन्दी व ५ थावरसाह भडार--स्थापित १७वी शताब्दी। राजस्थानी में मिलती है। आलोच्य काल से पूर्व जैन (ख) बीकानेर के शास्त्र भंडार कवियों मे जयसागर, दण्डागांगीय. दयाल, ऋपिवद्धन सूरि, मतिशेखर, पद्मानाभ,'पावचन्द्र सूरि, कुशल१. बृहद् ज्ञान भडार । २. श्री पूज्य जी का भंडार । लाभ तथा समयसुन्दर' प्रादि के नाम उल्लेखनीय है । राजस्थान मे जैन विद्वानों द्वारा जिस साहित्य की ३. श्री जैन लक्ष्मीमोहन शाला भंडार । ४. क्षमा कल्याण जी का भडार । रचना की गई है उसे मुविधा के लिए पाच भागों मे ५. छत्तीबाई के उपाश्रय का भडार । १. परम्परा पत्रिका में प्रकाशित-अगर चन्द नाहटा का ६. श्री अभय जैन पुस्तकालय । लेख, पृ०६१। ७. सेठिया लाइब्रेरी मादि । २. जैन गुर्जर कवियो-भाग १, पृ० २७ श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई। इनके अलावा अलवर, जयपुर, कोटा, जोधपुर, बूदी। जोधपुर, बूदा ३. राजस्थानी भाषा और साहित्य-डा. माहेश्वरी, . प्रादि मे भी जैन भडारो की विपुलता है। जिनमे सहस्रों पृ० २५० । हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध हैं। वस्तुतः जैन विद्वानों ने ४. जै. गू० क० भाग १ पृ० ४८ श्री देसाई । बड़े ही उदार भाव से जनेतर साहित्य का सरक्षण ५. जैन साहित्य नो सक्षिप्त इतिहास-रा ७६८ । किया। सैकडो फुट कर रचनाएँ और कई जनेतर उपकाव्य ६. राजस्थान के जन शास्त्र की भंडारो की सूचीतो उन्ही की कृपा से अब तक बच पाए है। जैनेतर भाग ३ (प्रस्तावना)। सग्रहालयो में जिन रचनामो की एक भी प्रति नहीं ७. ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह। मिलती, उनकी अनेकों प्रतियां जन भंडारो में मिलती हैं।''८. राजस्थान भारती भाग १ ० ४ जन० ४७ । इसके अतिरिक्त अनेको जैन ग्रथों मे जैनेतर कवियों के ६. जै० गु० क० भाग १ पृ० १३६ ।

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