Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 264
________________ जैन दर्शन में आत्म-तत्त्व विचार श्री लालचन्द जैन शास्त्री एम. ए. प्रात्मा दार्शनिक जगत् का सबसे अधिक महत्वपूर्ण में स्पष्ट रूप से व्यापक बतलाकर सर्वत्र उसका निवासतत्व माना गया है । इसलिए संसार के सभी ऋषि, मुनि, स्थान स्वीकार किया गया है।' दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों ने प्रात्मा को अपने चिंतन का बाद के भारतीय दर्शन में प्रात्मा के परिमाण के केन्द्रबिन्दु बनाया है। जीवन के चारों पुरुषार्थ का एक विषय में तीन प्रकार की विचारधाराएं उपलब्ध होती मात्र साधन प्रात्मा ही है ऐसा प्रायः सभी दार्शनिकों ने स्वीकार किया है।' जैन दर्शन मे पात्मा उपयोगस्वरूप, स्वामी, कर्ता, भोक्ता, स्वदेह परिमाण, प्रमूर्तिक और कर्म १-मारमा प्रणुपरिमाण वाला है संयुक्त माना गया है। [प्रात्मा को स्वदेह परिमाण मान रामानुजाचार्य, माध्वाचार्य, वल्लभ मतानुयायी, कर दार्शनिक जगत को आश्चर्य में डाल दिया ] अात्मा निम्बार्काचार्य, महाप्रभू चैतन्य, कबीरदास एवं मीराबाई का परिमाण एवं उसके निवासस्थान के विषय मे काफी ने प्रात्मा को बाल हजारवें भाग के बराबर अणुपरिमाण मतभेद दृष्टिगोचर होता है।' वाला माना है। यह अणु परिमाण बाला प्रात्मा हृदय पनिषदो मे प्रात्मा के परिमाण में कोई एक सुनि- में निवास करता है।" वादरायण का मत है कि जीवात्मा श्चित विचारधारा परिलक्षित नहीं होती है। कही पर एक शरीर को छोडकर लोकान्तर मे जाता है इससे पात्मा को व्यापक स्वीकार किया गया है तो अन्यत्र सिद्ध है कि प्रात्मा अणु रूप है। निम्बार्काचार्य ने प्रात्मा प्रणपरिमाण वाला मान कर हृदयस्थ माना गया है। का अणु परिमाण वाला मान कर प्रात्मगणों की अपेक्षा इसी प्रकार दूसरे स्थान में प्रात्मा को नख से सिख तक से उसे विभु स्वीकार किया है। रामानुजाचार्य का मन व्याप्त मानकर देह परिमाण माना गया है। किन्तु गीता है कि अणु परिमाण वाला जीव ज्ञानरूपी गुण के द्वारा समस्त शरीर के सुखादि संवेदन को अनुभव करने में १. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चार पुरुषार्थ माने गये है। समर्थ है। जैसे दीपक की शिखा यद्यपि छोटी होती है २. भौतिकवादी दार्शनिकों को छोड़कर । तथापि सकोच विस्तार गुण से युक्त होने के कारण समस्त ३. पञ्चास्तिकाय गाथा २७ । पदार्थों को प्रकाशित करती है।" यदि प्रात्मा को अणु न ४. पञ्चदशी ६७८ । न माना जाय तो परलोक गमन नही हो सकता है। ५. महान्तं विभुमात्मान मत्वा धीरो न शोपति । प्रणु प्रात्म परिमाण मानने वालो का मत है कि व्यापक कठो० १।२।२२ मात्मा परलोक गमन नही कर सकता एवं देह परिमाण वेदाहमेतमजर पुराण, सर्वात्मान सर्वगत विभत्वात् । श्वे० २०१२ ६. गोता २१२४-नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचतोऽय सनातनः ६. संगुष्टमात्र: पुरुषो मात्मनि तिष्ठिति । १०. पञ्चदशी ६१। कठो०२।१:१३, श्वे० ३।१३, बृहदारण्यक ५६७, ११. डा० राधाकृष्ण-भारतीय दर्शन १.६६२। छा० ३७४।३। १२. डा० राधाकृष्णन-भारतीय दर्शन भाग २, पृ०७५३ ७. मेषीतकी ४।२०। १३. ब्रह्मसूत्र रामानुज भाष्य २।३।२४-२६, डा. राधा८. मनु० १०५६ । कृष्णन भारतीय दर्शन माग २ पृ.६६३ ।

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