Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 271
________________ रणतभँवर (रणथंभौर) का कक्का : एक ऐतिहासिक रचना अनूपचन्द न्यायतीर्थ राजस्थान के जैन ग्रन्थ भण्डारों में कितनी ही ऐति- इस किले मे अनेक देवी-देवतामों के मन्दिर है जिनमें हासिक रचनाएं भी उपलब्ध हुई है उनमे से एक रण- गणेशजी तथा शकर के मन्दिर उल्लेखनीय हैं। इस थंभौर का कक्का है । इन भंडारों में कक्का या बारहखड़ी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक किले की ८४ घाटियाँ तथा चारों के रूप में कई रचनाए मिलती है किंतु रणथभौर का ओर ४ दरें हैं। महागणा-हम्मीर के समय में विद्वानों कवका नामक रचना एक नई कृति प्रतीत होती है । क एव बहादुरों का सम्मान किया जाता था। हिन्दू तथा से लेकर ह तक वर्गों के प्रथमाक्षर से दोहों में यह रचना मुसलमान का कोई भेदभाव नहीं था। पंडित तथा की गयी है। दोहे का पहला अक्षर कका, गगा, चचा, खानू सत्ती वहां रहते थे। मंदिर तथा मस्जिदें धर्माराधन पादि वर्ण से प्रारम्भ होता है। इस रचना मे व्यंजन के लिए बनी हुई थी। चारों ओर अनेक प्रकार के सुगसंख्यानुसार ३३ दोहे हैं । अन्तिम दोहा पूर्ण उपलब्ध नहीं न्धित फूलो एवं स्वादिष्ट फलो से वृक्ष सुशोभित थे। है । प्रति का अन्तिम पृष्ठ फट गया है । सभव है ३३ से बड़े अच्छे-अच्छे बगीचे थे। सदा नौबत तथा शहनाई मागे भी कोई परिचयात्मक दोहे दिये हो किन्तु कृति महाराणा हमीर का यशोगान करती रहती थी। यहाँ अप्राप्य है। रचना सीताराम गूजरगौड ब्राह्मण के पुत्र के प्रसिद्ध जोरा-भौरा दोनों ही भण्डार सदैव अटूट संपत्ति वेणीराम के पौत्र मोहन की है जिसका उल्लेख ३२वें दोहे से भरे रहते थे। यहां गुप्त गंगा का निवास लक्ष्मीनाथ मे निम्न प्रकार है रामचन्द्र विकटविहारी प्रादि के मन्दिर थे । राजमहलों ससा-सीताराम सुत मोहनो विरामण गूजर गोर। के बाहर नजदीक ही मे नौबतखाना तथा जले चौक नाती वणीराम को कको बणायो जोड ॥३२॥ सुशोभित था। बड़े-बडे कुण्ड तालाब बावडो प्रादि में रणथभौर के किले का कवि ने बडे ही सुन्दर ढग से कमल खिले हुए थे। किले का स्थान बड़ा ही रमणीक महत्व बतलाते हुए यशोगान किया है। यह किला था। इसके चारों मोर चार दाजे तथा सात पोल थे। संसार में प्रसिद्ध है तथा सभी बावन किलों का दुल्हा है । किले का वर्णन पढ़ने से ज्ञात होता है कि कवि मात्मा के परिमाण के विषय मे उपयुक्त विचार. मोहन जयपुर के महाराजा माधवसिंह मे प्रशंसको में से घारामों के विवेचन के पश्चात् यह निष्कर्ष निकालना एक था। इस किले पर महाराजा माधवसिंह का माधिकि कौनसा सिद्धान्त उत्तम है, असम्भव नहीं तो कठिन पत्य था, तथा वहां किसी समय पद्मऋषि तपस्या करते अवश्य है । पुनरपि अणुपरिमाण सिद्धान्त सर्वमान्य हो नहीं थे। सब प्रकार के फलफूल खिलते थे तथा वहां के स्थान सकता है, क्योंकि हरम में रहकर प्रात्मा शरीर के अन्य एक से एक बढ़ कर थे। जयपुर के हवामहल के सदृश भागों को किसी भी प्रकार से सचेतन नहीं बना सकता है जगन्नाथ के मन्दिर तथा महल थे। इस किले का नाम देकार्ड को भी अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा रणतभंवर था तथा इसकी शोभा अपरम्पार थी। इसका था। मात्मा का सर्व व्यापक सिद्धान्त पहले की अपेक्षा वर्णन कवि के शब्दों में देखिएयुक्तियुक्त है। पाश्चात्य दर्शन में स्पिनोजा ने ईश्वर का या शोभा रणथंभ की वरणी प्रकल विचार । गुणमान कर प्रात्मा को सर्व व्यापक ही स्वीकार यो किल्लो सुवस बसो रणत भंवर जगजाहर ।। किया है। * इस किले में शीतला माता की पूजा होती थी तथा

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