Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 293
________________ ध्यानशतक : एक परिचय बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री ध्यानशतक-यह एक ध्यानविषयक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ किया गया। है। भाषा उसकी प्राकृत व गाथासख्या १०५ है। वह कुछ हस्तलिखित प्रतियों में एक गाथा (१०६) और सुप्रसिद्ध हरिभद्र सूरि विरचित टीका के साथ श्री विनय- भी उपलब्ध होती है, जिसमे यह सूचित किया गया है भक्तिसुन्दरचरण ग्रन्थमाला द्वारा वि. सं. १९९७ में कि जिनभद्र क्षमाश्रमण ने मुनि जन के लिए कमविशुद्धयर्थ प्रकाशित हो चुका है। हरिभद्र सूरि ने उसे अपनी १०५ गाथामों मे ध्यान का व्याख्यान किया है। श्री पावश्यकसूत्र की टीका मे पूर्ण रूप से उद्धृत कर दिया पं. दलसुख भाई मालवणिया की कल्पना है कि वह है। प्रतिक्रमण नामक चतुर्थ प्रावश्यक के प्रकरण में 'पाड- नियंक्तिकार भद्रबाह के द्वारा रचा गया है। कमामि तिहि सल्लेहि' इत्यादि सूत्र के अन्तर्गत 'पडिक्क- रचयिता उसका कोई भी रहा हो' पर प्रन्थ की an - मामि उहि माहि-पट्टेणं झाणेणं कद्देणं. धम्मण० रचना सुव्यवस्थित व विषय का विवेचन उत्कृष्ट एवं सुक्केणं.' इसकी वहा व्याख्या करते हुए उन्होने ध्यान के प्रसाम्प्रदायिक है-दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों ही निरुक्तार्थ, काल, भेद और फल का निर्देश मात्र करते सम्प्रदायों में वह प्रतिष्ठित रहा है। हरिभद्र सूरि ने हुए यह कह दिया है कि 'यह ध्यान का समासार्थ है, उसका जहां अपनी आवश्यकसूत्र की टीकामें उसे पूरा ही उद्विस्तृत प्रथं ध्यानशतक से जानना चाहिए। वह यह है' घृत कर दिया है वहा षट्खण्डागम के प्रसिद्ध टीकाकार इतना कहते हुए उन्होंने उसे महान् पर्थ से गभित शास्त्रा- प्राचार्य वीरसेन ने ग्रन्थ और ग्रन्थकार के नामनिर्देश तर-एक पृथक् ही प्रन्थ बतलाया है। के बिना उक्त षट्खण्डागम के अन्तर्गत वर्गणा खण्ड मे प्रन्थकार-यहां हरिभद्र सूरि ने उसके रचयिता के कर्म अनुयोगद्वारगत तपःकर्म का व्याख्यान करते हुए नाम प्रादि का कुछ निर्देश नहीं किया। श्री विनयभक्ति प्रस्तुत ग्रन्थ की लगभग ४१ गाथामो को उद्धृत किया सन्दरचरण ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित उसके सस्करण में है। वहाँ तपश्चरण का प्रकरण होने से उन्होने प्रार्तउसे "जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण विरचित' निर्दिष्ट किया पर लिखा गया है, जो स्वतंत्र रूप मे देवचन्द्र लालगया है, पर वहा इसका प्राधार कुछ नहीं बतलाया। इसी भाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड सूरत से मुद्रित हुमा है. संस्करण के अन्त मे मुद्रित उक्त हरिभद्र सूरि विरचित __ (ई. १९२०)। वत्ति के कार मलघारगच्छीय हेमचन्द्र सूरि द्वारा निमित ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. ४, प. २५०.५१ टिप्पण' में भी प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता प्रादि का निदश नही ४. तत्त्वार्थसूत्र के अन्तर्गत वें अध्याय मे २७-४५ १. प्रय ध्यानसमासार्थः, व्यासार्थस्तु ध्यानशतकादवसेयः। (इवे. २७-४६) सूत्रो के द्वारा जो ध्यान का विवे तच्चेदम्-ध्यानशतकस्य च महार्थत्वाद्वस्तुतः शास्त्रा- चन किया गया है उसकी प्रस्तुत ग्रन्थगत उस न्तरत्वात् प्रारम्भ एव विघ्नविनायकोपशान्तये मङ्ग- ध्यान के विवेचन से तुलना करने पर ऐसा प्रतीत लार्थमिष्टदेवतानमस्कारमाह होता है कि वह तत्त्वार्थसूत्र के पश्चात् उसके (माव. सू. पूर्व भाग पृ. ५८२) प्राधार से रचा गया है। कारण यह कि तत्त्वार्थसूत्र २. यह टिप्पण मलधारगच्छीय हेमचन्द्र सूरि द्वारा हरि- का प्रभाव इसके ऊपर स्पष्ट रहा दिखता है। भद्र सूरि विरचित आवश्यक सूत्र की समस्त वृत्ति ५. षट्खण्डागम पु. १३, पृ. ६४-७७.

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