Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 303
________________ जैन-लक्षणावली (पारिभाषिक शब्द-कोश) इसका स्वरान्त (अ से औ तक) प्रथम भाग छप कर तैयार हो चुका है। इसमें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के लगभग ४०० ग्रन्थों से पारिभाषिक शब्दों को संकलित किया गया है। इन ग्रन्थों से जो उसमें लक्षण संगृहीत हैं उन्हें यथासम्भव कालक्रम से रखा गया है। यह शोध-खोज करने वाले विद्वानों के लिए महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ समझा जायगा । माथ ही वह तत्त्व जिज्ञासुमो के लिए भी उपयोगी हैं । विवक्षित विविध लक्षणों में से १-२ ग्रन्थो के ग्राथय से प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद भी प्रत्येक लाक्षणिक शब्द के नीचे दे दिया गया है। प्रस्तावना में १०२ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का परिचय करा दिया है तथा परिशिष्ट में ग्रन्थकारों के काल का भी निर्देश कर दिया गया है। छपाई उत्तम और पूर्णरूप से कपड़े की सुन्दर व टिकाऊ जिल्द है। बडे आकार में पृष्ट सख्या ४४० है । लागत मूल्य रु. २५-०० रखा गया है। [पृष्ठ २७७ का शेषांश] प्रथम दो-शुक्लध्यानों का सल है। अन्तिम दो शुक्ल- मे मग्न है बह ईा, विषाद व शोकादिरूप मानसिक ध्यानों का फल मोक्ष की प्राप्ति है। चिरसंचित कर्मरूप दु:खों से तथा शीत व प्रातप मादि शारीरिक दुःखों से ईधन को भस्मसात् करने का उपाय यह ध्यानरूप अग्नि भी सक्लेश को प्राप्त नही होता (१०३-४)। इस प्रकार ही है, इस बात को यहां अनेक उदाहरणों (६७-१०२) वह अतिशय प्रशस्त ध्यान चूंकि दृष्ट व अदृष्ट सुख का द्वारा पुष्ट किया गया है। अन्त में ऐहलोकिक फल का साधक है, इसीलिए यहाँ (१०५) उसके प्रदान करने भी निर्देश करते हुए कहा गया है कि जिसका चित्त ध्यान व चिन्तन करने की प्रेरणा दी गई है। 000

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