Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 287
________________ उत्तर पंचाल को राजधानी अहिच्छत्र परमानन्द जैन शास्त्री भारतीय इतिहास में अहिच्छत्र का प्राचीन नगर के गया था । किन्तु यह जिस जनपद की राजधानी थी उसका रूप में उल्लेख मिलता है। यह नगर उत्तर पाचाल की नाम 'पाचाल' था । पुराणों में जनपद का पांचाल नाम राजधानी था। यहाँ अनेक राजामों ने राज्य किया है। पड़ने का कारण एक राजा के पाच लडके थे । उनमें पहिच्छत्र भगवान पाश्वं नाथ की वह तपो भूमि थी, जहा राज्य के पांच भाग बाटे जाने के कारण इसे 'पांचाल उन्होने ८४६ ईसवी पूर्व पापी कमठ के जीव द्वारा किये सज्ञा प्राप्त हुई। हो सकता है इसका और अन्य कोई गए घोर उपसगों को सहा था। और धरणेन्द्र पद्मावती कारण रहा हो, विष्णु पुराण मे लिखा है कि जिस राज्य ने उसका निवारण किया था। उपसर्ग दूर होते ही के संरक्षण करने के लिए पांच समर्थ व्यक्ति यथेष्ट हों पार्श्वनाथ को कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। उसी समय से उस राज्य की संज्ञा पाचाल है' 'पञ्च प्रलं इति पंचालम् । इसका नाम अहिच्छत्र पड़ा। यजुर्वेद, ब्राह्मण प्रन्थों, पारण्यको तथा उपनिषदों में महाभारत के अनुसार पांचाल का विशाल क्षेत्र हिमा देश तथा उसमें निवास करने वाले लोगो के लिए पचाल लय पर्वत से चम्बल नदी तक विस्तृत था। उत्तरीपांचाल नाम का उल्लेख पाया जाता है । परवर्ती सस्कृत साहित्य, या रुहेलखण्ड की राजधानी अहिच्छत्र थी । और दक्षिण पाली निकाय ग्रथों और जैन साहित्य मे पंचाल के अनेक पाचाल की राजधानी काम्पिल्य थी। महाभारत के युद्ध उल्लेख मिलते है। से पूर्व (१४३० ईसवी के लगभग) पाचाल में द्रपद नाम प्राचीन अहिच्छत्र नगर के अवशेष उत्तर प्रदेश के का राजा राज्य करता था। कौरव-पाण्डवके गरू द्रोणाचार्य बरेली जिले मे वर्तमान राम नगर गाव के समीप टीलों ने उस पर विजय प्राप्त की थी । द्रोण ने उत्तरी पाचाल पर स्वय अधिकार कर लिया था । परन्तु राज्य का मे विखरे पड़े है । अहिच्छत्र पहुँचने के लिए पहले बरेली दक्षिणी भाग द्रुपद को वापिस कर दिया था। अहिच्छत्र से पावला नामक स्टेशन जाना पड़ता है। और प्रावला जिस जनपद की राजधानी थी उसका नाम महाभारत में से कच्ची सद्रक द्वारा १० मील उत्तर मे मोटर या तांगे एक स्थान पर अहिच्छत्र विषय उल्लिखित है: से चलकर अहिच्छत्र पहुँचते है। इस पुरातन नगरी के अहिच्छत्र च विषयं द्रोणः समभिपद्यत । ढह कई मील के विस्तार में फैले हुए है। रामनगर से एव राजन्नहिच्छात्रा पुरी जनपदा यता॥ लगभग डेढ़ मोल भागे पहिच्छत्र के पुराने अवशेष मिलते उत्तर और दक्षिण पंचाल की सीमा के मध्य गगा हैं। यह किला अाजकल मादि कोट के नाम से प्रसिद्ध है। इस किले के सम्बन्ध में यह जनश्रुति है कि इसे राजा नदी थी । किन्तु उत्तरी पांचाल की सीमा निश्चित नहीं आदि ने बनवाया था, और वह जाति से महीर था। थी। संभवत: हिमालय पर्वत उसकी उत्तरी सीमा का एक दिन वह किले की भूमि पर सोया हुप्रा था, उसके निर्मापक रहा हो । वैदिक साहित्य में अहिच्छत्र का नाम 'परिचक्रा' .. ऊपर एक नाग ने छाया कर दी थी । द्रोणाचार्य उसे इस मिलता है । हो सकता है कि उस समय इस नगर का १. विमल चरण लाहा पंचालज एण्ड देयर केपिटल स्वरूप चक्राकार या गोलाकार रहा हो। महा भारत 'अहिच्छवा' (मवायर प्राफ दि प्रार्केलाजिकल सर्वे काल मे परिचका के स्थान पर अहिछत्र' नाम रूट हो ग्राफ इडिया सख्या ६७) पृ० १.३ ।

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