Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 262
________________ २४०, वर्ष २४, कि०६ अनेकान्त नाम दिया गया परन्तु वह ज्यादा प्रचलित हुप्रा मालूम मे कोई शिकार तक नहीं खेलता न मांस खाता है । इससे नहीं होता । यथा--'संवत १६८८ वर्षे असोज सुदी १५ जैन व वैष्णव प्रभाव प्रगट होता है। श्री अग्गलपुरे जलालुद्दीन पातिसाह श्री अकबर सुत मकबर व अन्य मुगल सम्राटों के राज्य मे जैनो का जहांगीर सुत सवाई साहिजा विजय राज्य......।' अच्छा सम्मान पाया जाता है। ऊपर उल्लेख किया जा ___... जैनागमे यन्मति तद्वाक्य श्रवणेन निर्मलघीयां चुका है कि जगद्गुरु हीरविजय जी को अकबर ने निर्मापितोय ग्रहं श्री अकबराबाद पुरे...।" आमंत्रित और सम्मानित किया था और उनसे जैन तत्वो "... १६७१ ... विक्रमादित्य भूपते.."उग्रसेनपुरे का वर्णन सुना था। पर्वो के दिनो में हिंसा न करने का रम्ये..." भी फरमान निकाला था। जगदगुरु प्राचार्य श्री हीर विजय जी व तीर्थमाला इन बादशाहो के समय में प्रागरा मे बहुत से जैन के लेखक श्री शीलविजय जी ने भी प्रागरा ही लिखा है, कवि व विद्वान व सेठ हए है। यहाँ दिगम्बर व श्वेताम्बर कभी-कभी अकबराबाद भी। पं. बनारसीदास जी, भैय्या दोनो आम्नाए वालो का अच्छा प्रभाव था मोर दोनो भगवतीदास जी, भूधरदास जी मादि ने 'मागरा' व सम्प्रदायो मे सौहार्द था । एक दूसरे के उत्सव आदि में मकबराबाद दोनों ही नाम लिखे है। बहुत सी प्रतिमा सम्मिलित होते थे। एक दूसरे की सहूलियत के लिए लेखो मे भी आगरा ही लिखा मिलता है इससे जान मदिरों में दोनो सम्प्रदाय की मूर्तिया रहती थी और पडता है कि १६वी, १७वी शताब्दी मे ही प्रागरा नाम बिना किसी रुकावट के दर्शन पूजन होती थी। प्रसिद्धि पा गया था। मुसलमानी राज्य के व गदर के प्रागरे की प्राचीन बस्तियो मे जमुना पार नुनिहाई, कुछ समय बाद भी लिखा मिलता है। शोरीपुर के सिकन्दरा (जो सिकन्दर लोदी के समय में बसा हुआ था) भट्टारको को जो सनद बादशाह शाह पालम गाजी ने शाहगंज, ताजगज, मोती कटरा, रोसन मुहल्ला मुख्य थे दी थी उनमे भी अकबराबाद ही लिखा है। जहाँ जैनियो की बस्तियाँ थी, मन्दिर थे और बडे-बडे उग्रसेनपुर पोर अर्गलपुर नाम प्रकवर के द्वारा राज्यमान संठ व धनाढय रहते थे। नगर बसाने के पहिले हिन्दू राज्य काल में रहा था। शाहगज मे प. भूधरदास जी रहते थे। उस पुरातत्व की खोजों से जान पडता है कि अकबर द्वारा समय वहां पाश्वनाथ स्वामी जो चिन्तामणि पाश्वनाथ नगर बसाने से बहुत पहिले यहाँ समृद्धशाली हिन्दू व कहे जाते थे का मन्दिर था। किसी समय वहाँ जन राज्य था जो माल म पडता है कि प्राम्भिक मुसल- जैनो की बस्ती न रहन से मन्दिर उठ गया। बताया मानी पाक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त कर दिया था। ११वी जाता है कि श्री पाश्वनाथ स्वामी की विशाल मूर्ति वहाँ शताब्दी में मोहम्मद गौरी और गजनी की आगरा के से लाकर ताजगज के मन्दिर में विराजमान कर दी गयी निकट रपरी" और चन्दवार' के चौहान राजानी से थी और अन्य बहुत-सी मति मोती कटरा के मन्दिर में लडाइयो का उल्लेख इतिहास में पाया जाता है। तहखाने में रख दी गई थी। इन मूर्तियो के शिलालेख जैनों का सम्बन्ध--इस प्रकार हम देखते है कि व प्रशस्तियों को संग्रह किया जाय तो प्रागर क प्राचान आगग प्रदेश से जैन धर्मावलम्बियो का सम्बन्ध प्राचीन जंन इतिहास पर अच्छा प्रकाश पडे परन्तु दुर्भाग्यवश काल से रहा है। प्रागरा के कलेक्टर नेविल ने अपने दिगम्बर जैनो मे नवीन प्रतिष्ठानो का अधिक महत्व है, प्रागग गजेटियर (१९०५) मे लिखा है कि प्रागरा से प्राचीन गौरव का नही । इस समय शाहगज के पास श्वेताइटावा तक का प्रदेश---जमुना, चम्बल और क्वारी के कानोका 'दादावाडी' नाम का प्राचीन मन्दिर है। त्रिकोण म बमा हुमा क्षेत्र पूर्णतया अहिंसक है। इस क्षेत्र ताजगंज के मन्दिर मे जो पाश्वं नाथ तीर्थङ्कर की २. .. ४. : प्राचीन जैन शिलाले ग्व सग्रह भाग २ श्याम वर्ण विशाल मूर्ति विराजमान है उसका प० ५.६ इस सम्बन्ध में विशेष खोज की आवश्यकता है। बनारसी दास जी, भूधर दास जी, नन्दराय जा आदि ने

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