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किरण ८]
ग्वालियरके किलेकी जैन मूर्तियां
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बन गई है। यहां कुल २४ मूर्तियाँ हैं । इनके निर्माणका अत्यन्त सुन्दर है । मुख मण्डलपर सौभ्यताका एक अलौकिक समय हमें उन शिलालेखोंसे ज्ञात हो जाता है जो यहाँ भाव है। उँगलियाँ बड़ी कोमल और कला-पूर्ण है। परन्तु अंकित हैं, और काफी स्पष्ट हैं। ये शिलालेख संवत् १४६७ कटि-प्रदेशसे नीचेका भाग उतना मृदुल और सजीव नहीं (ई. सन् १४४०). और १५१० (ई. सन् १४५३) के हैं। है। इसका कारण इन मूर्तियोंकी विशालता ही है। बड़े रूप इससे प्रकट होता है कि ये मूर्तियाँ तोमर राजाओंके समय में अंग-विन्यासकी कोमलताकी रक्षा करना अत्यन्त कठिन की बनी हैं । दुर्भाग्यवश वे अपनी असली हालतमें नहीं हैं। है। इन मूर्तियोंके पैर तो विशेष रूपसे कुछ जड़ होजाते हैं। मुसलमानोंकी धार्मिक असहिष्णुताके कारण बहुत कुछ नष्ट आदिनाथ भगवानकी मूर्ति के पैर नो फीट लम्बे हैं और वह हो चुकी हैं। बाबर जब सिंहासन पर बैठा तो इन मूर्तियों पर चक्र चिन्दसे सुशोभित हैं। इस प्रकार मूर्ति पैरोंसे सात गुनी उसकी खास तौरसे नज़र पड़ी । आत्मचरितमें एक स्थानपर के लगभग बड़ी है। मूर्तिके बीचों-बीच सामने चट्टानका इन मूर्तियोंका ज़िक्र करते हुए बाबरने लिखा है-"लोगों एक अंश बिना कटा ही छोड़ दिया गया है। इसलिये समग्र ने इस पहाड़ीकी कड़ी चट्टानको काटकर छोटी-बड़ी अनेक मूर्तिको देखना कठिन है। यहांसे थोड़ा आगे चलकर मूर्तियां गढ़ डाली हैं । दक्षिणकी ओर एक बड़ी मूर्ति है जो पश्चिमकी तरफ नेमिनाथ भगवान्की एक दूसरी विशालमूर्ति करीब ४० फीट ऊँची होगी। ये सब मूर्तियाँ नग्न हैं। वस्त्र है। नेमिनाथ जैनियोंमें बाइसवें तीर्थङ्कर थे । आदिनाथकी के नामसे उनपर एक धागा भी नहीं । यह जगह बड़ी खूब- मूर्तिकी भांति यह मूर्ति भी खड़ी हुई है। परन्तु अन्य जो सूरत है। परन्तु सबसे बड़ी खराबी यह है कि ये नग्नमूर्तियाँ मूर्तियाँ हैं वे समासीन अवस्थामें हैं, और देखने में बहुत मौजूद हैं। मैंने इनको नष्ट करनेकी श्राज्ञा दे दी है।" कुछ भगवान बुद्धको मूर्तिसे मिलती-जुलती हैं। वास्तवमें
यद्यपि यत्र-तत्र इन मूर्तियों पर प्रहारके चिन्ह मौजूद साधारण दर्शकके लिये भगवान् बुद्ध और महावीरकी मूर्ति है। फिर भी कुल मिलाकर वे अच्छी हालत में हैं । यह वड़ी में किसी प्रकारका विभेद करना बड़ा कठिन है। परन्तु ये बात है। किलेसे बाहर निकलते ही, ज्यों ही आगे बढ़िए, मूर्तियां अपने विशेष धार्मिक चिन्होंसे सुशोभित रहती हैं,
आदिनाथकी एक विशाल मूर्ति बरबस हमारी दृष्टि श्राकृष्ट जिनकी वजहसे इन्हें पहचानना आसान है। ये चिन्द कई करती है। बाबरकी श्रात्म-जीवनीसे ऊपर हमने जो अंश प्रकारके होते हैं। उदाहरणके लिये वृषभ, चक्र, कमल, उद्धृत किया है उसमें ऊँचाई चालीस फीट बताई गई है, अश्व, सिंह, बकरी, हिरन आदि । जैनियोंके प्रथम तीर्थङ्कर परन्तु वह सत्तावन कीटसे कम ऊँची नहीं है। जैनियोंकी भगवान् श्रादिनाथकी मूर्ति के निकट सदैव वृषभ बना रहता इतनी बड़ी मूर्ति भारतमें एकाच जगह ही और है। मूर्तिकी है। घाटीकी दाहिनी तरफ और भी कई मूर्तियां हैं। ये विशालतासे दर्शक एकदम चकराकर रह जाता है । कल्पना अकेली बहुत कम हैं। एक साथ तीन-तीन मूर्तियां हैं। काम नहीं करती। जिन कलाकारोंने इस मूर्तिको गढ़ा होगा मूर्तियोंके कुछ आगे चट्टानका एक हिस्सा बिना कटा छोड़ वे अाज हमारे सामने नहीं हैं। उनका नाम भी हमें ज्ञात दिया है, जिसकी वजहसे एक दीवार-सी बन जाती है। यह ही । नामकी उन्हें इतनी परवा भी न थी। परन्तु उनकी शायद पुजारी अथवा भक्त-गणोंके लिये बैठनेका स्थान है। अनोखी कला, उनका अनुपम शिल्प-कौशल, उनका अतु- घाटीके बाहर दक्षिण-पश्चिमकी अोर मूर्तियोंका एक लित धैर्य, उनकी अटूट साधना, श्राज मानों आदिनाथ और समूह है। इनमें कुछ विशेष रूपसे उल्लेखनीय हैं। भगवानकी इस मूर्ति के रूपमें हमारे समक्ष उपस्थित हैं । इस एक तो शयनावस्था में एक स्त्री-मूति है, जो करवटसे लेटी कला-मूर्तिको एक बार प्रणाम करके हमने उसे पुन: ध्यान है और करीब आठ फीट लम्बी होगी। दोनों जांघे सीधी हैं, पूर्वक देखा । मुख मण्डल पर जैसे कुछ उपेक्षाका भाव है। परन्तु बाँया पैर दाहिनेके नीचे मुड़ा है । दूसरे स्थान पर परन्तु फिर भी मूर्ति अाकर्षक है। इस प्रकारकी सभी बड़ी तीन मूर्तियां हैं, जिनमें माता-पिताके साथ एक बालक जैन-मूर्तियोंमें एक प्रकारकी जड़ता-सी दृष्टि गोचर होती है। प्रदर्शित किया गया है। ये मूर्तियाँ भगवान् महावीरके अहारमें जो मूर्ति है उसके कटि-प्रदेशसे ऊपरका भाग तो माता-पिता त्रिशला और सिद्धार्थकी बतलाई जाती हैं, और