Book Title: Anekant 1941 09
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ ग्वालियरके किलेकी कुछ जैनमूर्तियाँ [ लेखक-श्रीकृष्णानन्द गुप्त ] ग्वालियरका किला एक विशाल पहाड़ी चट्टानपर स्थित रक्खी गई। मुझे अजन्ता और एलौरा जानेका सुअवसर है । इस पहाड़ीमें होकर शहरसे किले के लिये एक सड़क मिला है। हम लोग इन स्थानोके कितने ही चित्र देखें, जाती है। मूर्तियों में से कुछ तो इस सड़कके दोनों ओर चट्टान पुस्तकोंमें उनका कितना ही वर्णन पढ़ें, परन्तु वहाँ पहुँचने पर खुदी हैं, और कुछ दूसरी दिशामें हैं। पत्थरकी कड़ी पर जो दृश्य देखनेको मिलते हैं वह कल्पनासे एक दम परे, चट्टानको खोदकर ये मूर्तियाँ बनाई गई हैं। आश्चर्य-जनक और भव्य हैं। मनुष्य वहाँ जाकर अपनेको भारतवर्ष में ऐसे कई स्थान है, जहाँ कड़ी चट्टानोंको खो बैठता है। ऐसा प्रतीत होता है, मानों वह मायासे बनी खोदकर इस तरहकी मूर्तियों और गुफापोंका निर्माण किया हुई किसी अलौकिक पुरीमें भागया है। गया है । भारतीय कलामें इनका एक विशेष स्थान है। परन्तु एलौरामें जो जैन-गुफाएँ हैं उनकी कारीगरी भी गुफाएँ तो अपनी अदभुत कारीगरीके लिये संसार भरमें कम आश्चर्य-जनक नहीं है । जैनियोंकी कलाका एक विशेष प्रसिद्ध हैं। इनके अनुपम शिल्प-कौशलको देखकर साधा- रूप वहाँ देखनेको मिलता है। जब मैं एलौरा गया तो वहाँ रण दर्शक ही चकित होकर नहीं रह जाते, बल्कि बड़े-बड़े बाहरके एक मिश्नरी यात्री ठहरे हुए थे। वे अपनी प्रातः कला-मर्मज्ञ भी दाँतों तले उँगली दबाते हैं । ये गुफाएँ और और संध्या कालीन प्रार्थना नित्य एक जैन गुफामें जाकर मूर्तियाँ बौद्ध, जैन और ब्राह्मण, इन तीनों धर्मोंसे सम्बन्ध किया करते थे। बात चीत होने पर उन्हेंोंने कहा कि इस रखती हैं। कहीं-कहीं केवल एक धर्मकी, और कहीं तीनों स्थानका वातारण इतना शान्त और पवित्र है कि उसका धर्मोकी गुफाएँ और मूर्तियाँ पाई जाती हैं । एलौराके गुहा- मैं वर्णन नहीं कर सकता। जैन-गुफापोंकी एक विशेषता मन्दिरों में तीनोंके उदाहरण मौजूद हैं। इनमें बौद्ध गुफाएँ यह है कि वहाँ तीर्थङ्करोंकी मूर्तियाँ काफ़ी संख्यामें बनी सबसे प्राचीन हैं । फिर ब्राह्मण गुफाएँ बनी हैं, और उसके रहती हैं । एलौरामें जो गुफाएँ मैंने देखीं, वहाँ जैन तीर्थङ्करों बाद जैन गुफाएँ। एलीफेन्टाकी गुफात्रोंमें शैव धर्मकी प्रधा- की पंक्तियाँकी पंक्तियाँ विराजमान थीं। परन्तु जैनियोने नता है । बीजापुरके निकट 'बादामी' नामक एक स्थान है, पत्थरकी कड़ी चट्टानोंको काटकर एक दूसरे ही रूपमें अपने वहाँ एक पहाड़ीको काटकर जो चार उपासना-घर बनाये देवताओंको मूर्तिमान किया है। ग्वालियरमें शायद उसके गये हैं, वे तीनों धर्मोकी कलाके द्योतक हैं। जबकि अजन्ता सर्वश्रेष्ठ उदाहरण देखनेको मिलते हैं। वहाँ गुफाएँ न बना की गुफाएँ मुख्यत: बौद्ध धर्मसे सम्बन्धित हैं । ब्राह्मण और कर केवल चट्टानों पर ही उन्होने विशाल और भव्य बौद्ध इस प्रकारके स्थापत्यके विशेष रूपसे प्रेमी रहे हैं । इन मूर्तियाँ अंकित की हैं। गुफाओंके भीतर प्रवेश द्वारसे लेकर एक दम अन्त तक यों तो किलेमें कई जगह जैनमूर्तियाँ खुदी हैं, परन्तु मनुष्यकी प्रतिभा, कला, धर्म, उपासना, धैर्य, और हस्त- दक्षिण-पूर्वकी ओर तथा पहाड़ीकी एक और घाटीमें जो कौशलके आश्चर्यजनक दर्शन होते हैं । एलौगका कैलाश- जो मूर्तियाँ हैं वे विशेषरूपसे उल्लेखनीय हैं । किलेपरसे एक मंदिर तोजगत्-प्रसिद्ध है । यह एक पहाड़ीको काटकर बनाया बढ़िया सड़क घाटीमें होकर नौचे आती है, और वहाँसे गया है। बीचमें मंदिर, उसके चारों ओर मंदिरकी परिक्रमा, लश्करकी तरफ़ गई है। ऊँचाईपर होने, तथा पहाड़ी रास्तेमें और फिर परिक्रमाके साथ ही चारों तरफ दालाने भी हैं, होकर पानेकी वजहसे एक तो यह सड़क यों ही बहुत रमजिनमें ऐसी सुन्दर और सजीव मूतियाँ स्थापित हैं कि जान णीक है, परंतु दोनों ओर चट्टानपर खुदी हुई भगवान श्रादिपड़ता है वे सब अभी बोल पड़ेंगी। ये सब मूर्तियाँ भी नाथ, महावीर तथा अन्य कई जैन तीर्थंकरोंकी विशाल और चट्टानमेंसे काटकर बनाई गई हैं। दूसरी जगहसे लाकर नहीं भव्य मूर्तियोंके कारण तो वह और भी सुन्दर और दर्शनीय

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