Book Title: Anekant 1941 09
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 27
________________ तपोभूमि [ लेखक - श्री 'भगवत्' जैन ] आग के लिए ईंधन और व्यसन के लिए पैसा, ज्यादह होने पर भी ज्यादह नहीं । इसलिए कि इन दोनों के पास 'तृप्ति' नहीं होती ! इनके पास होती है। वैसी भूख, जो खाते-खाते और भी जोर पकड़ती है ! मथुराके प्रसिद्ध धनकुबेर - भानु जब वैराग्यको प्राप्त हुए, तब अपने पीछे पुत्रोंके लिए एक बड़ी रक़म छोड़ गए। लोगोंने अन्दाज लगाया - बारह करोड़ ! बारह करोड़ की पूंजी एक बड़ी चीज़ है । लेकिन व्यसन ने साबित कर दिखाया कि उसकी नज़रों में बारह करोड़की रकमका उतना ही महत्व है, जितना हमारे आपके लिए बारह रुपये का । उसे बारह अरब की सम्पत्ति भी 'तृप्ति' दे सकेंगी, यह निश्चय नहीं कहा जा सकता ! अखिर वही हुआ ! घरमें मुट्ठी भर अन्न और में फूटी कौड़ी भी जब नहीं रही तब सातों सहोदरोंने चोरी करना विचारा । व्यसनकी कालोंचने मन जो काले कर दिए थे, इससे अच्छा, सुन्दर विसार और निगाह में भर ही कौन सकता था ? रोजगार जो ठहरा, ललचा गया मन ! जोखिम की जरूर; पर, बड़ी रक्कमकी प्राप्तिका श्रीकर्षण जो साथ में नत्थी था - उसके ! और पुण्य-पाप की कमजोरियोंसे तो मन पहले ही जुदा होचुका था ! भानुसेट वैसम्म लाभ, या गृहत्यागका कारण भी यही था ! उन्हें किसी चतुर, अनुभवी ज्योतिषीने ! ला दिया था कि तुम्हारे सातों पुत्र व्यसनी होंगे, फिर परिश्रमापार्जित अतुल सम्पत्ति खोकर, चोरी करनेमें चित्त देंगे !' उन्हें यह सब, कब बर्दाश्त हो सकता था, कि उनके पुत्र दुराचारी, चोर और नंगे- भूखे कहाकर उन्हीं लोगोंके सामने आएँ, जो आज आज्ञाके इन्तज़ार में हाथ बाँधे खड़े रहते, या नजरसे नज़र मिलाकर उनसे बात नहीं कर सकते ! प्रारम्भ में बच्चों के सुधारका प्रयत्न किया ! प्रयत्न में डाट-फटकार, मार-पीट, प्यार-दुलार और लोभलालच सब कुछ इस्तेमाल किया ! लेकिन सफलता के नामपर इतना भी न हो सका - जितनी कि उड़द पर सफेदी ! आखिर हारकर, आत्म-कल्याणकी ओर उन्हें झुकना पड़ा | मानसिक पीड़ाने मन जो पका दिया था ! बड़ेका नाम था - सुभानु । और सबसे छोटेकासूरसेन । विवाह सातोंके होचुके थे । कुछ दिन खूब चैनकी गुज़री ! रसीली - तबियत, हाथमें लाख, दो लाख नहीं, पूरे बारह करोड़ की सम्पत्ति ! और उसपर स्ख्रर्चने खाने की पूर्ण स्वतंत्रता ! पिताका नुकीला अंकुश भी सिरपर नहीं रहा था ! और फिर वही हुआ, जो ज्योतिष शास्त्र ने पहले ही कह रक्खा था - यानी - सब चोर । x X X [२] उज्जैन के जंगल में पहुँचकर सबने विचारा -

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