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किरण]
रानी
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तो कल वहाँ! रानीने रो-रोकर श्रासान सिरपर उठा लिया! पर,
xx क्या कुछ नतीजा निकल सकता था ? गया हुआ कभी लौटा भी है ?
बहुत दिन बाद, एकदिनबात कुछ बड़ी नहीं थी ! मामूली बुखार था ! ऐसा,
चार छः हमजोलियोंके साथ, रोजकी तरह रानी शिकार दो-एक बार पहले भी आ चुका था, नया थोड़ा था ! पर,
की टोहमें निकली ! निर्जन-वन था ! पशु-पक्षी अपने मिले अबकी बार वह मौतको भी साथ ले आया, इसका किसी को पता न चला।
हुए, थोड़े-से सुखमें निमग्न, परिवारके साथ मौज़की किल___ बुखारने जोर पकड़ा ! इधर था, सर्दीका मौसम ! हो कारियाँ भर रहे थे ! शहरके जन-रवसे दूर, वे अपनेको गया चट निमोनियाँ! दवाएँ हुई, दुआएँ माँगी गई, अनेक निराकुल और निरापद समझ रहे थे ! परन्तु क्या वह उपचार हुए ! परन्तु सब व्यर्थ! सब चेष्टाएँ निष्फल ! उस
वष्टाए निष्फल ! उस तपोभूमि उनके लिए निरापद थी भी?
योग का जीवन-काल सिर्फ तीन-वर्षकी अल्प-अवधिमें आवद्ध
'ठाँय !-की एक हल्की अावाज़के साथ एक सुन्दर था! भला टाला जा सकता था, वह !
परिन्दा ज़मीनपर श्रा गिरा! रानीने गुलेलको मुँहमें दबाया xxx
रानीकी गोद सूनी होगई ! और साथ ही उसके लिए और अपने कठोर हाथोंसे लपक कर उसे उठा लिया ! सारी दुनिया, इस बड़ी-मी दुनियासे कहीं अधिक सुन्दर, देखा-'वह मर चका है ! फिर भी, यह आशंका न अधिक श्रानन्ददायी और अधिक मनोरम थी!
___ होनेपर भी कि वह उड़ सकता है, गर्दनको मरोड़ते हुए उसकी लावण्यता वासी-फूलकी तरह अशोभन होगई है ! न अब पहले-सी प्रफुल्लित रहती है, न मुग्ध ! यो उस
निर्दयतापूर्वक झोलेमें डाल लिया और आगे बढ़ी ! जैसे का तारुण्य अब भी उसके पास है, कहीं गया नहीं ! लेकिन अभी उसकी नृशंसताको तृप्ति नहीं, भूख ब-दस्तूर हो! . अब उसमें उमंग नहीं, उत्साह नहीं; उसके रिक्त स्थान पर साथी-लोग दूरपर, अपनी-अपनी घातमें लगे हैं ! तीसरे-यन जैसी निराशा है !
किसीको इतना अवकाश नहीं, कि कौन क्या कर रहा है? उसके मनमें, मनके एक अधूरे कोने में, एक वेदना है, कसक है, एक घाव है ! जो उसे पनपने नहीं देता,
देखे ! ज़रूरत भी क्या ? उसके तारुण्यको निखरने नहीं देता: मर्दा बनाए
सघन-वृक्षके पत्तोंमें छिपा हुश्रा एक छोटा-सा नीड़! बैठा है !
जिसमें बैठे थे दो पक्षी! शायद कबूतर थे! दोनों अपनी वह मुँहपर उदासी पोते हुए, बैठी रहती है-सुस्त,
छोटी-सी राजधानीके बादशाह थे ! लेकिन उनके सामने गुम-सुम ! निराशाकी प्रतिमूर्ति-सी । दिनका दिन बीत राजनैतिक उलझने नहीं थी ! उनका देश था-प्रेम, जाता है, रात भी पाती और खिसक जाती है ! पर वह है,
कानून था-तौज और टैक्स था-अल्प-भोजन ! किसी हद जो न खाती है, न पीती! न हँसती न किसीसे बोलती तक वे सुखी थे, और सुखमें बैठे, चैनकी बंशी बजा रहे चालती ! हां, जब कभी रोते हुए उसे ज़रूर देखा गया है!
थे! उन्हें खबर नहीं थी कि भविष्य उनके लिए क्या जीवन उसका अब दूसरी ओरको बह रहा है। पर वर्तमान बनाने में मशगूल हे ? वह उससे बेखबर नहीं! बहाये जारही है ! शायद सोच कि इसी समय रानीके गुलेलसे निकली हुई एक बैठी है-'चेष्टा कोई चीज़ नहीं, भाग्यनिर्णय बड़ी वस्तु है' कठोर कंकडीने बेचारेका प्राणान्त कर दिया! रोजके सधे
दिन समीरकी गतिसे निकलते चले जारहे हैं ! विल्लो- हुए हाथ, क्या निशाना चक सकते थे? चियोंका काफला भी पर्यटन करता जारहा है, आज यहाँ वह रानी के पद-सन्निकट-जमीनपर-पड़ा तड़पने लगा,