Book Title: Anekant 1941 09
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ अनेकान्त [वर्ष ४ साथमें बालकके रूपमें स्वयं भगवान् हैं। तत्त्व विभाग द्वारा प्रकाशित अन्य पुस्तकें पढ़ें [हमें स्वयं ___ दक्षिण-पूर्वकी ओर जो मूर्तियाँ हैं उन तक पहुँचना इन मूर्तियोंके दर्शन करने तथा किलेके अन्य पुराने स्थानों बहुत कठिन है। प्रयत्न करनेपर भी उन्हें हम देख नहीं सके। को देखनेमें इन ग्रन्थोसे बड़ी मदद मिली] ___ इन मूर्तियोंके सम्बन्धमें जो विशेष जानकारी प्राप्त करना चाहें वे ग्वालियर गजेटियर तथा ग्वालियरके पुरा .(मधुकर' पाक्षिकसे उद्धृत) +--: अमोघ आशा :-- [ लेखक-व्याकरण रत्न पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' ] [ ७ ] जगति का तृण-दल निखरेगा, सण-प्रतिक्षण मृदुकण बिखरेगा, मलयानलकी कम्पित, मोलीसे मजुल मकरन्द मरेगा। प्रकृति-सुन्दरी नृत्य करेगी, वन-विहँग मंगल गायँगे ! श्राएँगे, वे दिन आएँगे !! कभी हमारा था जग अपना, सुख था, दुखका था नहीं सपना; दस लक्षण, शुभ लक्षण थे तब, होती थी न अशुभ दुर्घटना। जब न रहे वे सुखके दिन तो, ये दुर्दिन भी टल जायेंगे ! भाएंगे वे दिन श्राएंगे !! [ २ ] मिट जायेगा, दर्द-पुराना, है परिवर्तन-शील जमाना; भूलेगा अन्तर, आंखों कीप्याली से आँसू छलकाना! निर्मम हो कर छोड़ गये जोममता लेकर घर आएँगे ! आएँगे, वे दिन आएँगे !! [ ३ ] निशा-निराशा का मुंह-काला, नभ से फूटेगा उजियाला; अरुण ,उषाके कोमल करसे छलक पड़ेगा जीवन प्याला। प्राशाके छींटों में दुब-डुबकरते तारे छिप जाएँगे ! श्राएँगे, वे दिन आएंगे !! [ ४ ] मंजु सुमन होंगे सहयोगी, कहीं न कोई पीड़ा होगी; सत्य - साधनाके साधनसेबन जायेंगे भोगी योगी। एक एक का हाथ पकड़ करदुख - सागरसे तिर जायेंगे ! श्राएँगें, वे दिन श्राएँगे !! [ ५ ] विप्लव, पापाचार घटेंगे; भीषण अत्याचार हटेंगे! सच्ची रीति • नीति से जगके, मिथ्यांचार - विहार मिटेंगे, प्रेम • सुधाकी दो घूटोंसेअमर सदा को हो जाएँगे! पाएँगे, वे दिन आएँगे !! विषम-वासना मिट जाएगी, साम्य - भावना छा जाएगी; सदाचारकी सुख-गंगामेंदुनिया फिर गोते लाएगी। घुल कर पीड़ा क्रीड़ाओं में-- पाप पुण्यसे धुल जाएँगे! श्राएँगे, वे दिन श्राएँगे !! फैलेगी नव-लता निराली, थिरक उठेगी डाली-डाली; संसृति झूम उठेगी सुख मेंतम में हँसती-सी दीवाली ! मंगलमय जग-जंगल होगा, सुखद-जलद जल बरसाएंगे! श्राएँगे, वे दिन श्राएँगे !! मधु होगा, पीने • खाने को, नन्दन - वन मन बहलानेको, भूतलसे नभतल तक होगासुन्दर पथ, श्राने • जानेको। 'सत्य' सखा बन साथ रहेगाजब चाहे पाएँ - जाएँगे ! पाएँगे, वे दिन आएँगे !!

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56