Book Title: Anekant 1939 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ १४४ अनेकान्त शरीरका मांस दान करने को तैयार हो गये थे । जैनशास्त्रोंमें भी श्रात्मोत्सर्ग के अनेक उदाहरण पाये जाते हैं, अवश्य ही वे कुछ भिन्न प्रकारके हैं। उदाहरणके लिये सुकुमाल मुनि तप कर रहे हैं और उनका शरीर एक जंगलकी गीदड़ी खा गई । इसी तरह श्वेताम्बर शास्त्रों के अनुसार, गजसुकुमाल स्मशान में कायोत्सर्गसे ध्यानावस्थित हैं । सोमिल ब्राह्मण श्राकर उनके सिर पर मिट्टीकी बाड़ बनाता है, उसे धधकते हुए अंगारोंसे भरकर उसपर ईंधन चिन देता है । गजसुकुमाल मुनि अत्यन्त उग्र वेदना सहन करते हैं और अन्त में उनका शरीर भस्म हो जाता है । [मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं० २४६६ जो लोग प्रव्रज्या (दीक्षा) लेने के लिये उत्सुक रहते थे, उनके माता-पिता और बन्धुजन उनको आग्रहपूर्वक बनमें जाने से बहुत रोकते थे । वे लोग करुण क्रंदन करते थे, नाना प्रकार के आलाप विलाप करते थे, और उनको नाना प्रकारकी युक्तियाँ देकर समझाते थे । पर इसका उन लोगों पर कोई प्रभाव नहीं होता था । विप्र और नमिराज के संवाद में विप्रने नमिराजसे कंहा कि महाराज आप दीक्षा न लें, आपकी मिथिला नगरी मिसे जल रही है; पहले वहाँ जाकर अग्निको शांत करें। किंतु नमिराज उत्तरमें कहते हैं - 'मिथिलायां प्रदीप्तायां न मे दहति किंचन' अर्थात् मिथिला नगरीके जलजाने से मेरा कुछ भी नहीं जलता । बौद्धोंके बंधनागार जातक में इस संबन्धमें जो कथा आती है, वह इस तरह है "जिस समय हिन्दुस्तानमें जैन और बौद्धोंका बोलबाला था, उस समय अनेक ब्राह्मण और श्रमण महावीर अथवा बुद्धके पास जाकर दीक्षित होते थे। दीक्षाउत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता था । जो गृहपति दीक्षा लेता था, वह अपने सम्बन्धी जनों को निमन्त्रण देता था, उनका ब सम्मान करता था। तथा स्नान इत्यादि करके अपने ज्येष्ठ पुत्रको घरका भार सौंपकर उसकी श्राज्ञा लेकर, पालकी में सवार होकर अपने इष्ट मित्रोंके साथ दीक्षागुरुके पास पहुँचता था, इन लोगों के संसारसे वैराग्य होनेका कारण नाशवान वस्तु होती थी। जैसे जातक ग्रंथोंमें आता है कि एक बार किसी राजाको घास पर पड़ी हुई श्रोसकी विन्दु देखकर वैराग्य हो आया । गन्धार जातक में कहा गया है कि एक बार किसी राजाने देखा कि चन्द्रमाको राहुने ग्रस लिया है, बस इसी बात पर उसने संसारका त्याग कर दिया । कभी कभी अपने सिर पर कोई सफ़ेद बाल देखकर भी लोगों को वैराग्य ह े श्राता था । इसी तरह संध्या कालीन मेघपंक्तिको शीर्णवशीर्ण देखकर लोग नकी तैयारी करने लगते थे । एक बार बोधिसत्त्व एक घनहीन गृहपतिके घर पैदा हुए । जब बोधिसत्त्व बड़े हुए, उनके पिता मर गये और वे नौकरी करके अपना तथा अपनी माताका उदर-पोषण करने लगे। कुछ समय बाद उनकी माँने उनकी इच्छा के विरुद्ध बोधिसत्वकी शादी करदी, और आप परलोक सिधार गईं। बोधिसत्वकी स्त्री गर्भवती हुई । वोधिसत्त्वको यह बात मालूम न थी । उन्होंने अपनी स्त्रीसे कहा – प्रिये, मैं गृह त्याग करना चाहता हूँ, तुम मेहनत करके अपना पोषण कर लेना । उनकी पत्नीने कहा - स्वामिन्, मैं गर्भवती हूँ, मेरे प्रसव कर नेके बाद, शिशुका मुख देखकर, आप प्रव्रज्या लेना । प्रसव हो गया। बौधिसत्त्वने फिर अनुमति चाही । स्त्रीने कहा- शिशु जरा बड़ा हो जाय तो श्राप जाइये । इस बीचमें बोधिसत्त्वकी पत्नीने दूसरी बार गर्भ धारण क्रिया । बोधिसत्वने सोचा कि यदि इस तरह मैं अपनी पत्नीकी बात पर रहूँगा तो मैं कभी भी अपना कल्याण :

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 68