Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 8
________________ अनेकान्त [वर्ष ३, किरण १६ अधिकारोंका उल्लेख करके भी दो ही अधिकारोंका (एत्थ) इस वेदनाखण्ड में--प्ररूपण किया गया है, वर्णन किया है । और भी बहुत कुछ संक्षिप्ततासे काम उन्हें खण्डग्रन्थ-संज्ञा न देनेका कारण उनके प्रधानतालिया है, जिससे उसे वर्गणाखण्ड नहीं कहा जी का अभाव है, जो कि उनके संक्षेप कथनसे जाना जाता सकता और न कहीं वर्गणाखण्ड लिखा ही हैं। इसी है । इस कथनसे सम्बन्ध रखने वाले शंका-समाधानके संक्षेप-प्ररूपण-हेतुको लेकर अन्यत्र कदि, फास, और दो अंश इस प्रकार हैं:कम्म श्रादि अनुयोगद्वारोंके खण्डग्रन्थ होनेका निषेध "उवरि उच्चमाणेसु तिसु खंडेसु कस्सेदं मंगलं ? किया गया है। तब अवान्तर्र अनुयोगद्वारोंके भी तिएणं खंडाणं । कुदो ? वग्गणामहाबंधाणं आदीए अवान्तर भेदान्तर्गत इस संक्षिप्त वर्गणाप्ररूपणाको 'वर्ग- मंगलकरणादो। ण च मंगलेण विणा भूदबलिणाखण्ड' कैसे कहा जा सकता है ? भडारओ गंथस्स पारंभदि तस्स अणाइरियत्तप्पऐसी हालतमें सोनीजी जैसे विद्वानोंका उक्त कथन सगादो। " कहाँ तक ठीक है, इसे विज्ञ पाठक इतने परसे ही स्वयं “कदि-फास कम्म-पयडि-( बंधण) अणियोगसमझ सकते हैं, फिर भी साधारण पाठकोंके ध्यानमें दाराणि वि एत्थ परूविदाणि तेसि खंडगंथसरणयह विषय और अच्छी तरहसे आजाय, इसलिये, मैं मकाऊण तिरिण चेव खंडाणि त्ति किमटुं उच्चदे? इसे यहाँ और भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ और यह ण तेसिं पहाणत्ताभावादो । तं पि कुदो णव्वदे ? खुने रूपमें बतला देना चाहता हूँ कि 'धवला' वेदनान्त संखेबेण परूवणादो।" चार खण्डोंकी टीका है--पाँचवें वर्गणाखण्डकी टीका उक्त, 'फास' आदि अनुयोगद्वारोंमेंसे किसीके भी नहीं है। शुरूमें मंगलाचरण नहीं है--'फासे त्ति', 'कम्मे त्ति' वेदनाखण्डकी आदिमें दिये हुए ४४ मंगलसूत्रोंकी ‘पयडि त्ति', 'बंधणे' त्ति' सूत्रोंके साथ ही क्रमशः मूल व्याख्या करने के बाद श्रीवीरसेनाचार्यने मंगलके 'निबद्ध' अनुयोगद्वारोंका प्रारम्भ किया गया है, और इन अनु. और 'अनिबद्ध' ऐसे दो भेद करके उन मंगलसूत्रोंको योगद्वारोंकी प्ररूपणा वेदनाखण्ड में की गई है तथा एक दृष्टि से अनिबद्ध और दूसरी दृष्टि से निबद्ध बतलाया इनमेंसे किसीको खण्डग्रन्थकी संज्ञा नहीं दी गई, यह है और फिर उसके अनन्तर ही एक शंका-समाधान बात ऊपरके शंकासमाधानसे स्पष्ट है । ऐसी हालतमें दिया है, जिसमें उक्त मंगलसूत्रोंको ऊपर कहे हुए तीन सोनीजीका 'वेदना' अनुयोगद्वारको ही 'वेदनाखण्ड' खण्डों--वेदणा,बंधसामित्तविचो और खुद्दाबंधों-का बतलाना और फास, कम्म, पयडि अनुयोगद्वारोंको मंगलाचरण बतलाते हुए यह स्पष्ट सूचना की गई है तथा बंधण-अनुयोगद्वारके बन्ध और बंधनीय अधिकारोंकि 'वर्गणाखण्ड' की आदिमें तथा 'महाबन्धखंड' की को मिलाकर 'वर्गणाखण्ड'की कल्पना करना और यहाँ आदिमें प्रथक मंगलाचरण किया गया है, मंगलाचरण तक लिखना कि ये अनुयोगद्वार “वर्गणाखंडके नामके बिना भूतबलि श्राचार्य ग्रन्थका प्रारम्भ ही नहीं से प्रसिद्ध हैं" कितना असंगत और भ्रमपर्ण है उसे करते हैं। साथ ही, यह भी बतलाया है कि जिन कदि, बतलानेकी ज़रूरत नहीं रहती । 'वर्गणाखंड' के नामसे फास, कम्म, पयडि, बिंध गद्वारोंका भी यहाँ *देखो, पारा-जैन सिद्धान्तभवन की 'धवल'प्रति पत्र ५३२

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