Book Title: Anchalgacchiya Lekh Sangraha
Author(s): Parshva
Publisher: Anantnath Maharaj Jain Derasar

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Page 95
________________ (१) ॥ संवत् १६७१ वर्षे वैशाष शुदि ३ शनौ रोहिणी नक्षत्रे श्री आ(२) गरा वास्तव्योपकेश ज्ञातीय लोढा गोत्रे गावंशे सं० रुषभदास (३) भार्या रेषभी तत्पुत्र संघाधिप सं० श्री कुंरपाल सं० श्री सोनपा(४) ल तत्सुत सं० संघराज सं० रूपचंद चतुरभुज धनपालादियुतैः (५) श्रीमदंचल गच्छे पूज्य श्री ५ धर्ममूर्तिसूरि तत्पट्टे पूज्य (६) श्री ५ कल्याणसागरसूरीणामुपदेशेन विहरमान श्री ईश्वर (७) जिन बिंबं प्रतिष्ठापितं सं० श्रीकान्ह। (मस्तकपर) पातिसाह श्री जहांगीर विजयराज्ये (३०८ ) (१) ॥ श्रीमत्संवत् १६७१ वैशाष शुदि ३ शनौ रोहिणी नक्षत्रे आगरा वा(२) स्तव्योसवाल ज्ञाती लोढा गोत्र गावंशे सा० राजपाल भार्या राजश्री (३) तत्पुत्र सं० रुषभदास भा० रेषश्री तत्सुत संघाधिप सं० कुंरपाल सं० (४) श्री सोनपाल तत्सुत सं० संघराज सं० चतुर्भुज सं० धन(५) पाल पौत्र भुधरदास युतैः श्री अंचलगच्छे पूज्य श्री (६) ५ श्री धर्मसूरि पट्टालंकार श्री कल्याणसागरसूरीणामुपदेशेन (७) श्री पद्मानन जिन बिंबं प्रतिष्ठापितं ॥ श्री ॥ (मस्तकपर) पातिसाह श्री जहांगीर विजयराज्ये . ( ३०९) संवत् १६७५ वर्षे वैशाख शुदि १३ तिथौ शुक्रवासरे श्रीमदंचल गच्छाधिराज पूज्य श्रीधर्ममूर्तिसूरि विजयराज्ये श्रीश्रोमाली ज्ञातीय अहमदावादवास्तव्य साह भवान भार्या राजलदे पुत्र साह थीमजी सूपजी द्वाभ्यामेका देहरी कारापिता विमलाचले चतुर्मुखे ॥ ( ३१०) स्वस्ति श्रीवत्सभापि न विष्णुश्चतुराननः । न ब्रह्मा यो वृषांकोपि न रुद्रः स जिनः श्रिये ॥१॥ संवत् १६७५ वर्षे शाके १५४१ प्रवर्तमाने समग्रदेशशंगारहाल्लारतिलकोपमम् । अनेकेभ्य गृहाकीण नवीनपुरमुत्तमम् ॥२॥ (૩૦૯) શ્રી શત્રુંજયગિરિ ઉપર શ્રી આદીશ્વર ભગવાનના જિનાલયની ઇશાન ખૂણામાં આવેલી દહેરીને લેખ. (૩૧૦) શ્રી શત્રુંજયગિરિ ઉપર હાથીપળના દરવાજાની જમણી બાજુ તરફના જિના લયને ૩૧ પંક્તિનો શિલાલેખ.

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