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२३० विद्यमान हैं । विजयगच्छ की पट्टावली भी मैंने “जैन भारती" में प्रकाशित कर दी है। उसमें लेखांक ४३८ से ४४० में आये हुये आचार्यों के नाम है हीं। संवत् १५४० के लग भग बीजा ऋषि हुये, उन्हों के नामसे “बीजामत" चला, जिसको आगे चलकर “विजय गच्छ" भी कहा जाने लगा । लेखांक ४३९ में “ विधपक्ष" शब्द आया है जिससे “विधिपक्ष" मानकर उसे अंचलगच्छ से संबंधित बतला दिया गया है । पर षिमासागर के शिष्य ऋषि हीरागर का नाम लेखांक ४४० में भी आया और उसमें स्पष्ट रूप से "बीजामत" का उल्लेख है । हीरागर के ब्राकट में प्रश्न चिन्ह के साथ (? हीरसागर) नाम छपा है । पर वह ठीक नहीं है । १
। (२) लेखांक २८२ में “ संततीय" शब्द पर विचार करते हुए जो सम्भावना की गई है वह भी विचारणीय है । इस शब्द के आगे “वंत्रास" शब्द छपा है वह भी अशुद्ध लगता है। मेरे ख्याल से लेख को पढ़ने या नकल करने में भ्रम या गलती हुई है । अतः मूल लेख को अच्छी तरह फिर से पढ़ा जाना चाहिये । २
(३) पृष्ठ ११ में हेमा, भोजादि नामों को तुच्छता सूचक बतलाये हैं। पर वास्तव में बात ऐसी नहीं है । ये नाम तो उन व्यक्तियों के प्रसिद्ध संक्षिप्त नाम थे जिन्हें सभी लोग इन्हीं नामों से सम्बोधन करते थे । इनके पीछे लाल, चन्द्र, राज, सिंह, देव आदि प्रत्यय या नामान्त पद नहीं होने पर भी ये तुच्छता सूचक नहीं माने जा सकते । 3
(४) पृष्ठ ११ की टिप्पणी में मेरे नामोल्लेख के साथ “ अजीमगंजवाले मूल अंचलगच्छ के थे । १५० वर्ष पहले खरतरगच्छ की सामाचारी करने लगे, पर संवत्सरी पंचमी की करते हैं," इत्यादि लिखना सही नहीं है । वे मूल अंचलगच्छ के थे, यह बात मैंने या कलकत्ता निवासी मेरे भतीजे भंवरलालने कभी नहीं कही । ४
(५) पृष्ठ १६ में दशा वीशा भेद संबंधी चर्चा की गई है। इस संबंध में मेरा एक लेख “ अनेकान्त" वर्ष ४, अंक १० में अब से २३ वर्ष पहले प्रकाशित हो चुका है। लेख का शीर्षक है-“दशा-वीशा भेद का प्राचीनत्व" । दशा-वीशा शब्द का प्रयोग १५ वीं शताब्दी के पहले किसी भी लेख में नहीं मिलने की बात कही गई है पर मैंने अपने लेख में संवत् १३८८ की एक प्रशस्ति में ओशवाल वीशा शब्द पाये जानेका उल्लेख किया है । खरतरगच्छ के आचार्य जिनपतिसूरिजी की सामाचारी में दशा-वीशा का उल्लेख है और
૧ શ્રી જયંતવિજયજીએ આબુ ભા. ૨ પૃ. ૪૪ માં આ સંભાવના દર્શાવી હતી. ૨ આ સંગ્રહ ઉપરાંત અન્ય સંગ્રહમાં પણ આવા લેખો પ્રાપ્ત થાય છે.
૩ રાજ્યમાં કે સમાજમાં ઉચપદ શોભાવતી વ્યક્તિઓના નામની પાછળ તે પછી માનસૂચક પ્રત્યય લેખોમાં કેમ હશે? નામાની આવી અસમાનતાનું કારણ શું હોઈ શકે ?
૪ અજીમગંજવાળાઓ અંચલગચ્છના હતા કે નહીં એ મુદ્દા ઉપર પ્રકાશ પાડવું પણ જરૂરી છે.