Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 173
________________ १४४ बृहत्कल्पसूत्रे निर्ग्रन्थी मदविह्वला भवति, रसपुलाके भुक्तेऽजीर्णादिरोगसंभवः, ततः सूत्रार्थस्वाध्यायादिपरिमन्थस्तेन संयमविराधना, वातप्रकोपादिना आत्मविराधना च स्पष्टैवेति भुक्तपुलाकभक्ता द्वितीयवारं गृहस्थगृहे भिक्षार्थं न प्रविशेदिति सूत्राशयः ॥ सू०५२ ॥ इति श्री - विश्वविख्यात - जगद्वल्लभ - प्रसिद्धवाचक - पञ्चदशभाषा कलितललितकला पालापकप्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक - वादिमानमर्दक- श्रीशाहू छत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त“जैनाचार्य ” – पद भूषित - कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्म - दिवाकर - पूज्यश्री - घासीलालवतिविरचितायां "बृहत्कल्पसूत्रस्य” चूर्णि भाष्या-वचूरीरूपायां व्याख्यायां पञ्चमोद्देशकः समाप्तः ॥ ५ ॥

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