Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मो कप्पइ निग्गंणाणं वा निग्गंधीणं वा अंतरागिर्हसि इमाइं पंच महव्ययाई समा. वणाई आइक्खित्तए वा. विभावित्तए वा किट्टित्तए वा पवेइत्तए वा, नन्नस्थ एगनाएण वा जाव एगसिलोएण या, सेवि य ठिचा नो वेव णं अद्विचा ॥२१॥
नो कप्पइ मिग्गंधाण वा मिरगयीण वा पाडिहारियं सागारियसंतयं सेज्जासंथारयं आयाए अपडिहटु संपवइत्तए ॥२२॥
नो कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंधीण वा पाडिहारियं सागारियसंतयं सिज्जासंथारयं आयाए अविकरणं कटु संपव्वइत्तए ॥२३॥
कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाटिहारियं सागारियसतयं सेज्जासंथारयं आयाए विकरणं कटु संपव्वइत्तए ॥२४॥
इह खलु निग्गंयाण वा निग्गंधीण वा पाडिहारिए सागारियसंतए सेज्जासंथारए विप्पणसिज्जा से अणुगवेसियव्वे सिया, से य अणुगवेस्समाणे लभेजा तस्सेव पडिदायव्वे सिया, से य अणुगवेस्समाणे नो लभेज्जा एवं से कप्पइ दोच्चंपि उग्गई अणुन्नवित्ता परिहारं परिहरिसए ॥२५॥
जदिवसं समणा निग्गंथा सेज्जासंथारयं विप्पजहंति तदिवसं अवरे समणा मिग्गंथा हव्यमागच्छेज्जा सच्चेष उग्गहस्स पुष्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमयि उग्गहे ॥
अस्थि या इस्य केइ उक्स्सयपरियावन्नए अचित्ते परिहरणारिहे सच्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि उग्गहे ॥२७॥
से वत्थुसु अध्वावडेसु अव्वोगडेसु अपरपरिग्गहिएसु अमरपरिग्गहिएसु सच्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि उग्गहे ॥२८॥
से वत्थुसु वावडेसु वोगडेसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्टाए दोच्चंपि उग्गहे अणुण्णवेयवे सिया अहालंदमवि उग्गहे ॥२९॥
से अणुकु इडेसु वा अणुभित्तिसु वा अणुचरियासु वा अणुफलिहासु वा अणुपंथेसु वा अणुमेरासु वा सज्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा अदालंदमवि उग्गहे ॥३०॥
से गामस्स वा जाव रायहाणीए वा बहिया सेण्णं संनिविद्रं पेहाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा तदिवसं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए । नो से कप्पइ तं रयणि तत्थेव उवाइणावित्तए, जो रवलु निग्गंथो वा निग्गंथी वा तं रयणि तत्थेव उवाइणावेइ, उवाइणावंतं वा साइज्जइ, से दुहओवि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्धाइयं ॥३१॥
से गामसि वा जाव रायहाणिसि वा कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं उग्गहं ओगिण्डित्ता णं चिहित्तए ॥३२॥
॥ तइओ उहेसो समत्तो.॥३॥
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