Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text ________________
खित्तचित्तं निगथि निग्गंथे निण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ ॥१०॥
एवं दित्तचित्तं० ॥११॥ जक्खाइटुं० ॥१२॥ उम्मायपत्तं ॥१३॥ उवसम्गपत्तं णिगंथि थिग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ॥१४॥
साहिगरणं ॥१५॥ सपायच्छित्तं ॥१६॥ भत्तपाणपडियाइक्खियं ॥१७॥ अट्ठजायं निग्गंथि णिग्गंथे निण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ ॥१८॥
छ कप्पस्स पलिमंथू पन्नत्ता, तं जहा-कोकुइए संजमस्स पलिमंथू १, मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमंथू २, तितिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू ३, चक्खुलोलए इरियावहियाए पलिमंथू ४, इच्छालोलुए मुत्तिमग्गस्स पलिमंथू ५, भिज्जाणियाणकरणं सिद्धिमग्गस्स पथिमंथू, सव्वत्थ भगवया अणियाणया पसत्था ६ ॥१९॥
छव्विहा कप्पट्टिई पण्णत्ता तंजहा-सामाइय संजयकप्पट्टिई १, छेओवट्ठावणियसंजयकप्पट्टिई २, णिव्विसमाणकप्पट्टिई ३, णिविट्ठकाइयकप्पट्टिई ४, जिणकप्पट्टिई ५, थेरकप्पट्टिई ६, त्ति बेमि ॥२०॥
॥ कप्पस्स छटो उद्देसो समत्तो ॥६॥
॥ इति श्री-बृहत्कल्पसूत्रस्य
मूलपाठः
समाप्तः॥ IAMINIDATINITIATISTIATIMIMINIA
Loading... Page Navigation 1 ... 206 207 208 209 210