Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे सोगंधियपोंडरीयसयपत्तसहस्सपत्तफुल्लकेसरोवचिया' बहूत्पलकुमुदनलिनसुभगसौगन्धिकशतपत्रसहस्रपत्रफुल्लकेसरोपचिताः । अत्र फुल्लकेसरेति विशेषणपदस्य परनिपातः प्राकृतत्वात्, तेन फुल्लकेसरैः-प्रफुल्लितकेसरयुक्तवहुभिरुत्पलादि भिन्नभिन्न जातीयकमलैरुपचिता उपचयं प्राप्ता यास्तास्तथा । 'छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ' षट्पदपरिभुज्यमानकमलाः, पदपदैः-भ्रमरैः परिभुज्यमानानि कमलानि उपलक्षणात् कुमुदादीनि च यासु तास्तथा, 'अच्छविमलसलिलपुण्णाओ' अच्छविमलसलिलपूर्णाः, अच्छैः-स्वरूपतः स्फटिकवत् शुभ्नः विमलैरागन्तुकदोपपरिवर्जितैः सलिलैः-जलैः पूर्णा यास्तथा, 'पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभा' 'कच्छभ' इति लुप्तविभक्तिकम् आर्षत्वात्, तेन पडिहत्थम्रमन्मत्स्या कच्छपाः 'पडिहत्थ' इति देशीशब्दोऽतिरेकतावाचकस्तेन पडि हत्थाः-प्रभूता यणलिण सुभगसोगंधिय पोंडरीयसयपत्त सहस्सपत्तफुल्लकेसरोवचिया' इनके अनेक उत्पल कुमुद नलिन सुभग, सौगंधिक पुण्डरीक शतपत्र और सहस्रपत्र फूले रहते है, और ये उनके किचल्कों से व्याप्त बने रहते है 'छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ' इनमें जो प्रफुल्लितकमल और उपलक्षण से कुमुद है उनपर भ्रमर बैठे रहते है
और रसास्वादलिया करते हैं 'अच्छविमलसलिलपुण्णाओ' स्वभावतः स्फटिक के जैसे शुभ्र और विमल-आगन्तुक दोषों से रहित होने के कारण निर्मल जल से ये सब जलाशयपरिपूर्ण भरे रहते है । 'परिहत्थ भमंतमच्छकच्छभा' यह लुप्तविभक्ति वाला है इनमे बहुत अधिक संख्या में मच्छ और कच्छप इधर से उधर-धूमते रहते है यहां 'पडिहत्थ' यह देशी शब्द है इसका अर्थ अतिरित अनेक पक्षियों के जोडे नु नाम भृणाल छे. 'बहुउप्पल कुमुद णलिण सुभगसोगंधियपोंडरिय सयपत्त सहरसपत्त फुल्लकेसरोवइयाओ' मेमा मने मुद्दो, Grua नलिन, सुभा, सौग. ધિક પુંડરિક, શતપત્ર અને સહસપત્રો ખીલેલા રહે છે. અને એ તેના કિંજ
साथी ५२॥गाथा व्यास २९ छे. 'छप्पय परिभुज्जमाणकमलाओ' तेभारे - લિત કમળ અને ઉપ લક્ષણથી કુમુદ છે. તેના પર ભમરાઓ સદા બેસી રહે छ. भने तेनी २सावा सीधा ४२ छ. 'अच्छ विमलसलिलपुण्णाओ' स्पमाવથી જ સ્ફટિકના જેવા સફેદ અને વિમલ આગન્તુક દે વિનાના હોવાથી આ
साशय निम थी पूरे पू२॥ भरायेदा २९ . 'पडिहत्यभमंतमच्छ कच्छभा' २॥ ५४ सुत विक्षत पाणु छ. २Vाशयोमा घणी माथि सध्यामा माछा भने यमाया मामतेम धूभ्य। ४२ छ, माडीया 'पडिहत्थ' से देशीय શબ્દ છે. અને તેનો અર્થ આ શિવાય અનેક પક્ષિયેના જોડલાઓ પણ તેમાં
જીવાભિગમસૂત્ર