Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम वर्ग] आर्य सुधर्मा स्वामी वोल--"जम्बू ! श्रमण भगवान् ने अष्टम अन्तकृद्दशांग के अाठ वर्ग प्रतिपादन किए हैं।" विवेचन-पागम-परिपाटी के पर्यवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि सर्व आगम आर्य जंबू स्वामी और आर्य सुधर्मा स्वामी के प्रश्नोत्तर रूप हैं। आर्य जंबू स्वामी प्रश्न करते हैं और आर्य सुधर्मा स्वामी उसका उत्तर देते हैं / यही प्रश्नोत्तर आज हमारे सामने आगमों के रूप में दिखाई देते हैं। इसकी स्पष्टता प्रस्तुत सूत्र में झलकती है / अन्तकृद्दशांग सूत्र का शुभारंभ इस प्रकार के प्रश्नोत्तर से ही होता है / इस सूत्र में प्रश्नोत्तर द्वारा आर्य जंबू स्वामी ने अष्टम अन्तकृद्दशांग आगम के श्रवणवर्णन की जिज्ञासा प्रस्तुत की है। __वस्तुतः प्रागमों के तीन प्रकार हैं--(१) अात्मागम, (2) अनन्तरागम और (3) परंपरागम' / गुरुजनों के उपदेश बिना स्वयमेव आगमों का ज्ञान होना प्रात्मागम कहलाता है। तीर्थंकर परमात्मा के लिये अर्थागम प्रात्मागम रूप हैं और गणधरों के लिये सूत्रागम आत्मागमरूप हैं। (मूलरूप आगम को सूत्रागम, सूत्र के अर्थ रूप आगम को अर्थागम और सूत्र और अर्थ उभयरूप आगम को तदुभयागम कहते हैं)। स्वयं आत्मागमधारी पुरुष से प्राप्त होने वाला आगमज्ञान अनन्तरागम कहा गया है। भगवान के लिये अर्थागम अनन्तरागम रूप है। तथा जंबू स्वामी आदि गणधर-शिष्यों के लिये सूत्रागम अनन्तरागमरूप है। आत्मागमधारी महापुरुष से प्राप्त न होकर जो आगम-ज्ञान उनके शिष्य-प्रशिष्य आदि की परम्परा से प्राप्त होता है, वह परम्परागम कहा जाता है। जैसे जंबू स्वामी आदि गणधरशिष्यों के लिये अर्थागम परम्परा रूप है। तथा इन के बाद के सभी साधकों के लिये सूत्र एवं अर्थ दोनों प्रकार के आगम परम्परागम हैं। अतः यह स्पष्ट ही है कि प्रस्तुत अन्तकृद्दशांग सूत्र अर्थ की दृष्टि से तीर्थंकर परमात्मा के लिये आत्मागम है, गणधरों के लिये अनन्तरागम है और गणधर-शिष्यों के लिये परम्परागम है। इसी प्रकार यह अागम सूत्र की दृष्टि से गणधरों के लिये प्रात्मागम, गणधर-शिष्यों के लिये अनन्तरागम, और गणधर-प्रशिष्यों के लिये परम्परागम है। __अर्थरूप से आगमों का प्रतिपादन तीर्थकर परमात्मा करते हैं, गणधर उन्हें सूत्र रूपमें गूथते हैं। वस्तुतः गणधर भगवान् तीर्थंकर परमात्मा से प्राप्त किए हुए पदार्थ के प्रचारक हैं, स्वयं उसके द्रष्टा या स्रष्टा नहीं हैं। प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि आर्य सुधर्मा ने जंबू अनगार से कहा-हे जंबू ! भगवान् महावीर ने अन्तगड सूत्र के पाठ वर्ग प्रतिपादन किये हैं। ___ इस सूत्र में प्रयुक्त "वग्गा" शब्द वर्ग का बोधक है / वर्ग का अर्थ होता है शास्त्र का एक विभाग, प्रकरण या अध्ययनों का समूह / आर्य सुधर्मा स्वामी के प्रस्तुत विचारों को जानकर आर्य जंबू स्वामी ने जो तिवेदन प्रस्तुत किया वह अब तृतीय सूत्र में दर्शाया जाता है१. अनुयोगद्वार प्रमाण विषय-सूत्र-१४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org