Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 235
________________ 168 | | अन्तकृद्दशा (E) भरतक्षेत्र: जम्बूद्वीप का दक्षिणी छोर का भूखण्ड भरतक्षेत्र के नाम से विश्र त है। यह अर्धचन्द्राकार है / जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार इसके पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में लवण समुद्र हैं।' उत्तर दिशा में चल हिमवत पर्वत है / उत्तर से दक्षिण तक भरतक्षेत्र की लम्बाई 526 योजन 6 कला है और पूर्व से पश्चिम की लम्बाई 14471 योजन और कुछ कम 6 कला है। इसका क्षेत्रफल 53,80,681 योजन, 17 कला और 17 विकला है। भरतक्षेत्र की सीमा में उत्तर में चूलहिमवंत नामक पर्वतसे पूर्व में गंगा और पश्चिम में सिन्धु नामक नदियां बहती हैं / भरतक्षेत्र के मध्य भाग में 50 योजन विस्तारवाला वैताढ्य पर्वत है। जिसके पूर्व और पश्चिम में लवणसमुद्र है / इस वैताढ्य से भरत-क्षेत्र दो भागों में विभक्त हो गया है जिन्हें उत्तर भरत और दक्षिण भरत कहते हैं / जो गंगा और सिन्धु नदियाँ चूलहिमवत पर्वत से निकलती हैं वे वताढ्य पर्वत में से होकर लवणसमुद्र में गिरती हैं / इस प्रकार इन नदियों के कारण, उत्तर भरत खण्ड तीन भागों में और दक्षिण भरत खण्ड भी तीन भागों में विभक्त होता है। इन छह खण्डों में उत्तरार्द्ध के तीन खण्ड अनार्य कहे जाते हैं / दक्षिण के अगल-बगल के खण्डों में भी अनार्य रहते हैं / जो मध्यखण्ड है उसमें 25 / / देश आर्य माने गये हैं। उत्तरार्द्ध भरत उत्तर से दक्षिण तक 238 योजन 3 कला है और दक्षिणार्द्ध भरत भी 238 योजन 3 कला है।। जिनसेन के अनुसार भरत क्षेत्र में सुकोशल, अवन्ती, पूण्ड, अश्मक, कुरु, काशी, कलिंग, अंग, बंग, सुहह्म, समुद्रक, काश्मीर, उशीनर, आनर्त, वत्स, पंचाल, मालव, दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ, कूरुजांगल करहाट, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, आभीर, कोंकण, वनवास, आन्ध्र, कर्णाटक, कौशल, चोल, केरल दास, अभिसार, सौवीर, शूरसेन, अपरान्तक, विदेह सिन्धु, गान्धार, यवन, चेदि, पल्लव, काम्बोज, पारट्ट, वाल्हीक, तुरुष्क, शक और केकय प्रादि देशों की रचना मानी गई हैं। वौद्ध साहित्य में अंग, मगध, काशी, कौशल, वज्ज, मल्ल, चेति, वत्स, कुरु, पंचाल मत्स्य, शरसेन, अश्मक, अवन्ती, गंधार और कम्बोज इन सोलह जनपदों के नाम मिलते है।५० 1. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, सटीक, वक्षस्कार 1, सूत्र 10, पृ६५।२ 2. वही. 1 / 10 / 65-2 3. लोकप्रकाश, सर्ग 16, श्लोक 30-31 4. लोकप्रकाश, सर्ग 16, श्लोक 33-34 5. वही. 16 / 48 6. वही. 16635 7. वही. 16636 9. (क) वही. 16, श्लोक 44 (ख) बृहत्कल्पभाष्य 1, 3263 वृत्ति, तथा 1, 3275-3289. 8. प्रादिपुराण 163152-156 10. अंगुत्तरनिकाय; पालिटैक्स्ट सोसायटी संस्करण : जिल्द 1, पृ. 213, जिल्द 4, पृ. 252 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249