Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [अन्तकृद्दशा पारणा किया, करके चौला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया, करके बेला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया, करके तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके चौला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया, करके पचौला किया करके सर्व कामगुरणयुक्त पारणा किया, करके उपवास किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया, करके बेला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया करके तेला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया। इस प्रकार यह लघु (क्षुद्र-क्षुल्लक) सर्वतोभद्र तप-कर्म की प्रथम परिपाटी तीन माह और दस दिनों में पूर्ण होती है / इसकी सूत्रानुसार सम्यग् रीति (विधि) से अाराधना करके आर्या महाकृष्णा ने इसकी दूसरी परिपाटी में उपवास किया और विगय रहित पारणा किया। जैसे रत्नावली तप में चार परिपाटियां बताई गईं वैसे ही इस में भी होती हैं। पारणा भी उसी प्रकार समझना चाहिये। इस की प्रथम परिपाटी में पूरे सौ दिन लगे, जिसमें पच्चीस दिन पारणा के और 75 दिन उपवास के होते हैं। चारों परिपाटियों का सम्मिलित काल एक वर्ष, एक मास और दस दिन हुआ। _ विवेचन-"खुड्डिय सव्वग्रोभद्द पडिम" में क्षुल्लक शब्द महद् की अपेक्षा से है। सर्वतोभद्र तप दो प्रकार का है, एक महद् एक लघु / यह लघु है, इस बात को प्रकट करने के लिये क्षुल्लक शब्द का प्रयोग किया गया है। गणना करने पर जिसके अंक सम अर्थात् बराबर हों, विषम न हों, जिधर से गणना की जाए उधर से ही समान हों, उसे सर्वतोभद्र कहते हैं। इसमें एक से लेकर पांच अंक दिये जाते हैं, चारों ओर जिधर से चाहें गिन लें, सभी ओर 15 ही संख्या होती है। एक से पांच तक सभी ओर से गिनने पर एक जैसी संख्या होने से इसे सर्वतोभद्र कहा जाता है। यह प्रस्तुत यंत्र से स्पष्ट होती है सब्बतोमद-पडिमा तपदिन५५ यारो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org