Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 164] [ अन्तकृद्दशा बौद्ध दृष्टि से चार महाद्वीप हैं, उन चारों के केन्द्र में सुमेरु है। सुमेरु के पूर्व में पुव्व विदेह' पश्चिम में अपरगोयान अथवा अपर गोदान' उत्तर में उत्तर कुरु और दक्षिण में जम्बूद्वीप है।४ बौद्ध परम्परा के अनुसार यह जम्बुद्वीप दस हजार योजन बड़ा है। इसमें चार योजन जल से भरा होने के कारण समुद्र कहा जाता है और तीन हजार योजन में मानव रहते हैं। शेष तीन हजार योजन में चौरासी हजार कूटों (चोटियों) से सुशोभित चारों ओर बहती 500 नदियों से ऊँचा हिमवान पर्वत है / उल्लिखित वर्णन से स्पष्ट है कि जिसे हमें भारत के नाम से जानते हैं वही बौद्धों में जम्वूद्वीप के नाम से विख्यात है।" (5) द्वारका (द्वारवती) :-- भारत की प्राचीन प्रसिद्ध नगरियों में द्वारका का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। श्रमण और वैदिक दोनों ही संस्कृतियों के वाङमय में द्वारका को विस्तार से चर्चा है / (1) ज्ञाताधर्मकथा व अन्तगडदसायो के अनुसार द्वारका सौराष्ट्र में थी। वह पूर्व-पश्चिम में बारह योजन लम्बी, और उत्तर-दक्षिण में नव योजन विस्तीर्ण थी। वह स्वयं कुबेर द्वारा निर्मित सोने के प्राकार वाली थी, जिस पर पांच वर्गों के नाना मणियों से सुसज्जित कपिशीर्षक- कंगूरे थे / वह बड़ी सुरम्य, अलकापुरी-तुल्य और प्रत्यक्ष देवलोक-सदृश थी। वह प्रासादिक, दर्शनीय अभिरूप तथा प्रतिरूप थी। उसके उत्तर-पूर्व में रैवतक नामक पर्वत था / उसके पास समस्त ऋतुओं में फल-फूलों से लदा रहनेवाला नन्दनवन नामक सुरम्य उद्यान था। उस उद्यान में सुरप्रिय यक्षायतन था। उस द्वारका में श्रीकृष्ण वासुदेव अपने सम्पूर्ण राजपरिवार के साथ रहते थे। 1. डिक्शनरी पाव पाली प्रापर नेम्स, खण्ड 2, 5.236 2. वही. खण्ड 1, पृ. 117 3. वही. खण्ड 1, पृ. 355 4. वही. खण्ड 1 पृ. 941 5. वही. खण्ड 1, पृ. 941 6. वही. खण्ड 2, पृ. 1325-1326 7. (क) इण्डिया ऐज डेस्क्राइब्ड इन अली टेक्सट्स प्राव बुद्धिज्म ऐंड जैनिज्म प 1, विमल चरण लॉ लिखित, (ख) जातक प्रथम खण्ड, पृ 282, ईशानचन्द्र घोष (ग) भारतीय इतिहास की रूपरेखा भा. 1, पृ. 4, लेखक-जय चन्द्र विद्यालंकार (घ) पाली इंगलिश डिक्शनरी पृ. 112, टी. डब्ल्यू गैस डेविस तथा विलियम स्टेड (ड) सुत्तनिपात की भूमिका-धर्मरक्षित पृ. 1 (च) जातक-मानचित्र-भदन्त अानन्द कौशल्यायन 8. (क) ज्ञाताधर्म कथा 1 / 16, सूत्र 113. (ख) अनगडदशाओ 9. ज्ञाताधर्म कथा 135, सूत्र 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org