Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 229
________________ 162] [ अन्तकृद्दशा (2) गुणशील राजगृह के बाहर गुणशील नामक एक प्रसिद्ध बगीचा था। भगवान महावीर के शताधिक बार यहाँ समवसरण लगे थे। शताधिक व्यक्तियों ने यहाँ पर श्रमणधर्म व चारित्रधर्म ग्रहण किया था। भगवान् महावीर के प्रमुख शिष्य गणधरों ने यहीं पर अनशन कर निर्वाण प्राप्त किया था। वर्तमान का गुणावा, जो नवादा स्टेशन से लगभग तीन मील पर है, वही महावीर के समय का गुणशील है। (3) चम्पा चम्पा अंग देश की राजधानी थी। कनिंघम ने लिखा है-भागलपुर से ठीक 24 मील पर पत्थरघाट है। यहीं इसके आस-पास चम्पा की उपस्थिति होनी चाहिए। इसके पास ही पश्चिम की ओर एक बड़ा गांव है, जिसे चम्पानगर कहते हैं और एक छोटा-सा गांव है, जिसे चम्पापुर कहते हैं / संभव है, ये दोनों प्राचीन राजधानी चम्पा की सही स्थिति के द्योतक हों।' फाहियान ने चम्पा को पाटिलपुत्र से 18 योजन पूर्व दिशा में गंगा के दक्षिण तट पर स्थित माना है। महाभारत की दृष्टि से चम्पा का प्राचीन नाम 'मालिनी' था। महाराजा चम्प ने उसका नाम चम्पा रखा।३। स्थानांग में जिन दस राजधानियों का उल्लेख हुआ है और दीघनिकाय में जिन छह महानगरियों का वर्णन किया गया है, उनमें एक चम्पा भी है / औपपातिक सूत्र में इसका विस्तार से निरूपण है / " दशवकालिक सूत्र की रचना आचार्य शय्यंभव ने यहीं पर की थी। सम्राट् श्रेणिक के निधन के पश्चात् कूणिक (अजातशत्रु को राजगृह में रहना अच्छा न लगा और एक स्थान पर चम्पा के सुन्दर उद्यान को देखकर चम्पानगर बसाया। गणि कल्याणविजयजी के अभिमतानुसार चम्पा पटना से पूर्व (कुछ दक्षिण में) लगभग सौ कोस पर थी / आजकल इसे चम्पानाला कहते हैं / यह स्थान भागलपुर से तीन मील दूर पश्चिम में है / __ चम्पा के उत्तर-पूर्व में पूर्णभद्र नाम का रमणीय चैत्य था, जहाँ पर भगवान महावीर ठहरते थे। --------- ----- -------- 1. दो एन्शियण्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ. 546-547 2. ट्रैवेल्स ऑफ फाहियान, पृ. 65. 3. महाभारत 12/5/134 4. स्थानांग 10/717 5. औषपातिक, चम्पा वर्णन 6. जैन पागम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. 464 7. विविध तीर्थकल्प, पृ. 65 8. श्रमण भगवान महावीर, पृ. 361 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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