Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय अध्ययन मुद्गरपाणि अर्जुन मालाकार २-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे / गुणसोलए चेइए / सेणिए राया / चेलणा देवी। तत्थ णं रायगिहे नयरे प्रज्जुणए नामं मालागारे परिवस इ-अड्डे जाव' अपरिभूए। तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था-सूमालपाणिपाया। तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थं णं महं एगे पुकारामे होत्था-किण्हे जाव [किण्होभासे, नीले नीलोभासे, हरिए हरिप्रोभासे, सीए सोप्रोभासे, णिद्ध णिद्धोभासे, तिव्वे तिब्वोभासे, किण्हे किण्हच्छाए, नोले नीलच्छाए, हरिए हरियच्छाए, सीए सोयच्छाए, णिद्ध णिद्धच्छाए. तिब्वे तिव्वच्छाए, घण-कडिय-कडिच्छाए रम्मे महामेह] निउरंबभूए दसद्धवण्णकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूबे / तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुगयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिम-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था-पोराणे दिवे सच्चे जहा पुण्णमद्दे। तत्थ णं मोरगरपाणिस्स पडिमा एग महं पलसहस्सणिप्फण्णं अनोमयं भोग्गरं गहाय चिट्ठ।। तए णं से अज्जुणए मालागारे बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणि-जक्खभत्ते यावि होत्था। कल्लाकल्लि पच्छियपिडगाई गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाम्रो नयरानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव परकाराम तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता पप्फच्चयं करेड, करेता अम्गाई बराई परफाई गहाय, जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स महरिहं पुष्फच्चणं करेइ, करेत्ता जाणुपायपडिए पणामं करेइ, तो पच्छा रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरइ। उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था। वहाँ गुणशीलकनामक उद्यान था / उस नगर में राजा श्रेणिक राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चेलना था। उस राजगृह नगर में 'अर्जन' नाम का एक माली रहता था। उसकी पत्नी का नाम 'बन्धुमती' था, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी। उस अर्जुनमाली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम (फलों का बगीचा) था। वह पुष्पोद्यान कहीं कृष्ण वर्ण का था, [श्याम कान्तिवाला था, कहीं मोर के गले की तरह नील एवं नील कान्तिवाला था, कहीं हरित एवं हरित कान्तिवाला था। स्पर्श की दृष्टि से कहीं शीत और शीत कान्तिवाला, कहीं स्निग्ध एवं स्निग्ध कान्तिवाला, वर्णादि गुणों की अधिकता के कारण तीव्र एवं तीव्र छायावाला, शाखाओं के आपस में सघन मिलने से गहरी छायावाला, रम्य तथा महामेघों के समुदाय की तरह प्रतीत हो रहा था। उसमें पांचों वर्गों के फूल खिले हुए थे। वह बगीचा इस भांति हृदय को प्रसन्न एवं प्रफुल्लित करने वाला अतिशय दर्शनीय था। उस पुष्पाराम अर्थात् फूलवाडी के समीप ही मुद्गरपाणि नामक यक्ष का यक्षायतन था, जो उस अर्जुनमाली के पुरखाओं-बाप-दादों से चली आई कुलपरंपरा से सम्बन्धित था। वह 'पूर्णभद्र' समान पुराना, दिव्य एवं सत्य प्रभाव वाला था। उसमें 'मुदगरपाणि' नामक यक्ष की एक प्रतिमा थी, जिसके हाथ में एक हजार पल-परिमाण (वर्तमान तोल के अनुसार लगभग 62 // सेर तदनुसार लगभग 57 किलो) भारवाला लोहे का एक मुद्गर था / 1. वर्ग 3, सूत्र 1. चैतन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org