Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 18] [अन्तकृद्दशा श्रीकृष्ण के तीर्थकर होने की भविष्यवाणी ४-तए णं से कण्हे वासुदेवे परहं अरिटुमि एवं वयासी-- "प्रहं णं भंते ! इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिस्सामि ? कहिं उववज्जिस्सामि ?" तए गं अरहा परिणेमो कण्हं वास देवं एवं वयासी "एवं खलु कण्हा ! तुमं बारवईए नयरोए सुरग्गि-दीवायण-कोव-निदड्डाए अम्मापिइ-नियगविप्पहूणे रामेण बलदेवेण सद्धि दाहिणवेयालि अभिमुहे जुहिद्विल्लपामोक्खाणं पंचण्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं पास पंडुमहुरं संपत्थिए कोसंबवणकाणणे नग्गोहवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टए पीयवस्थपच्छाइय-सरीरे जराकुमारेणं तिक्खणं कोदंड-विष्पमुक्केणं उस णा वामे पादे विद्ध समाणे कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढबीए उज्जलिए नरए नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि।" तए णं से कण्हे वास देवे अरहनो अरिडणेमिस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म प्रोहय जाव' झियाइ। कण्हाइ ! अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वास देवं एवं वयासी-"मा णं तुमं देवाणुप्पिा ! ओहयमणसकप्पे जाव' झियाह / एवं खलु तुम देवाणुप्पिया! तच्चाओ पुढवीनो उज्जलियारो नरयानो प्रणंतरं उव्यट्टित्ता इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए डेस जबणएस सयदुवारे नयरे बारसमे अममे नाम परहा भविस्ससि / तत्थ तुमं बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणेत्ता सिज्झिहिसि बुझिहिसि मुच्चिहिसि परिनिव्वाहिसि सव्वदुक्खाणं अंतं काहिसि / तए णं से कण्हे वास देवे अरहो अरिढणेमिस्स अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ० अप्फोडेइ, अप्फोडेत्ता बग्गइ, वग्गित्ता तिवई छिदइ, छिदित्ता सोहणायं करेइ, करेत्ता अरहं अरिदम वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव आभिसेक्कं हतिथ दुरूहइ, दुरूहिता जेणेव बारवई नयरी, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। प्राभिसेयहत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सए सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी तब कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्टनेमि को इस प्रकार बोले"हे भगवन् ! यहाँ से काल के समय काल कर मैं कहाँ जाऊंगा, कहां उत्पन्न होऊंगा?" इसके उत्तर में अरिष्टनेमि भगवान् ने कहा---- हे कृष्ण ! तुम सुरा, अग्नि और द्वैपायन के कोप के कारण इस द्वारका नगरी के जल कर नष्ट हो जाने पर और अपने माता-पिता एवं स्वजनों का वियोग हो जाने पर राम बलदेव के साथ दक्षिणी समुद्र के तट की ओर पाण्डुराजा के पुत्र युधिष्ठिर आदि पाचों पांडवों के समीप पाण्डु मथुरा की ओर जाओगे / रास्ते में विश्राम लेने के लिये कौशाम्ब वन-उद्यान में अत्यन्त विशाल एक वटवृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिलापट्ट पर पीताम्बर अोढकर तुम सो जानोगे। उस समय मृग के भ्रम में जराकुमार द्वारा चलाया हुआ तीक्ष्ण तीर तुम्हारे बाएं पैर में लगेगा। इस तीक्ष्ण तीर से बिद्ध होकर तुम काल के समय काल करके वालुकाप्रभा नामक तीसरी पृथ्वी में जन्म लोगे। प्रभु के श्रीमुख से 1. 2. देखिये वर्ग 3, सूत्र 12. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org