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शैली से इन प्रतियों का लेखन समय १६-१७ वी सदी का माना जा सकता है। इन सभी प्रतियों की झेरोक्ष कोपी ही मिली। ये सभी अस्पष्ट काले धब्बे वाली हैं और कहीं कहीं तो अवाच्य पत्र भी है। इन झेरोक्ष प्रति से सम्पादन करना बड़ा ही कष्ट साध्य रहा । अत: भूलों का रहना भी स्वाभाविक ही है।
अबतक के अप्रकाशित चूर्णियों में भगवतीचूर्णि भी एक है। प्रस्तुत भगवतीचूर्णि अपूर्ण है। इसका वर्तमान स्वरूप पांचवें शतक से प्रारंभ होता है। पूर्व के चार शतक काल दोष से नष्ट हो गये हैं। बीच बीच में भी लिपिक ने कोरे पृष्ट छोड़ दिये हैं। जो पंक्तियाँ कोरी थी उन्हें मैंने और लिपिकार ने (...) कोष्टक देकर स्पष्ट किया है। यह चूर्णि ७००० श्लोक प्रमाण थी किन्तु वर्तमान में केवल ३५०० श्लोक प्रमाण ही प्राप्त होती हैं। प्रत्येक प्रति में ग्रन्थाग्र अलग अलग मिलते हैं। एक प्रति में ३५९०, दूसरी में ६७०४, तीसरी में ७००९ ग्रन्थान मिलता है। परवर्ती किसी अज्ञात आचार्य ने भगवतीचूर्णि को पूर्ण करने की दृष्टि से प्रथम के चार शतक पर संस्कृत में अवचूरि की रचना की है। यह अवचूरि पाटण ज्ञान भण्डार डा. नं. १६६ प्रति नं. ६५४२, में है। तथा महावीर आराधना भवन कोबा के ज्ञान भण्डार में भी है। इस प्रति में प्रथम पृष्ठ से १-३६ पृष्ठ तक अवचूरि है और शेष पृष्ठ ३७ से चूर्णि का आरंभ होता है यह अवचूरि अप्रकाशित है। भगवतीचूर्णिः
जैन आगमों में बृहद्काय आगम अगर कोई है तो वह भगवतीसूत्र है। जैन तत्त्वज्ञान का सागर जैसे भगवतीसूत्र पर आचार्य श्री अभयदेवसूरि ने अपने पूर्ववर्ती टीका भाष्य चूर्णि का आधार लेकर विशालकाय वृत्ति की रचना की थी। आचार्यप्रवर ने अपनी वृत्ति में आगम के गूढ़ रहस्य को प्रकट करने के लिए अनेक स्थानों में चूर्णि का उल्लेख किया है और चूर्णि के पाठों को भी उद्धृत किया है। प्रस्तुत भगवती चूर्णि जो पाठकों के हाथ में है, यह वही है। बृहद्कायआगम की चूर्णि भी बृहद्काय ही होनी चाहिए किन्तु चूर्णिकार ने अपनी चूर्णि को सागर को गागर में भर दिया है । अर्थात् भगवतीसूत्र जैसे विशालकाय ग्रन्थ को चूर्णि के रूप में अत्यन्त संक्षिप्त सार रूप में प्रस्तुत किया है।
भगवतीसूत्र जिसका दूसरा नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति - विआहपण्णत्ती है। यह पांचवां अंगसूत्र है। प्रश्नोत्तर के रूप लिखा जानावाला यह व्याख्या ग्रंथ व्याख्याप्रज्ञप्ति है। इसमें भगवान महावीर एवं गौतम गणधर के बीच जो प्रश्नोत्तरि के रूप में वार्तालाप हुआ उनका संकलन है। समवाय और नन्दीसूत्र के अनुसार इसमें छत्तीस हजार प्रश्नों का भ. महावीर के द्वारा समाधान का उल्लेख है। इसमें स्वसमय, परसमय जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि अनेक विषय वर्णित है। देवों, राजाओं, राजर्षियों, परिव्राजकों पार्वानुयायी श्रावक, श्राविकाओं के प्रश्नोत्तर के साथ नगर, नगरी, राजा, राणी, वन, उपवन, उद्यान एवं विविध पात्रों के चरित्र वर्णन विस्तृत रूप में वर्णित है। प्रस्तुत चूर्णिकार ने वर्णनात्मक घटनाओं को छोड दिये हैं। चरित्र वर्णन में केवल गोशालक का ही चरित्र अत्यन्त संक्षिप्तरूप में दिया है। जयन्ती श्राविका, सोमिल, कार्तिकसेठ, जमालि के केवल नामोल्लेख कर उनके प्रश्नों का संक्षिप्तरूप में ही उत्तर दिया है। भगवतीसूत्र के सभी उद्देशक के प्रश्नों का उत्तर भी उन्होंने अत्यंत संक्षिप्त रूप में ही दिये हैं। उनकी दृष्टि में जो प्रश्न परिचित थे प्रसिद्ध थे उनको उन्होंने छोड़ दिये हैं। जीव आदि के भेद प्रभेद का उल्लेख मात्र कर उनका संक्षिप्त में ही उत्तर दिया है। अपने समस्त चूर्णि
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