Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 13
________________ सूत्रकृतास्त्रे श्रुतस्कन्धः प्रारभ्यते । अत उभावपि स्कन्धी समानविषयावेव । केवलं प्रथमे संक्षेपतो येषां प्रतिपादनं तेषामेवाऽत्र विस्तरेण कथनं भविष्यति। अस्मिन् श्रुत. स्कन्धे-पुण्डरीक १ क्रियास्थाना २ ऽऽहारपरिज्ञा ३ प्रत्याख्याना ४ नगारश्रुता५ ऽऽक ६ नालन्दा ७ ख्यानि. सप्ताऽध्ययनानि सन्ति । तत्र प्रथमश्रुतस्कन्धाऽध्ययनाऽपेक्षयाऽर्थतो महत्वं विद्यते, अतोऽस्य महाध्ययनमिति नामापि भवति । तत्र प्रथमाध्ययनं पुण्डरीकमिति नाम । तत्र पुण्डरीकं-कमलं तदुपमानेन धर्मे रुचिमुत्पादयितुं विलक्षणं महतामाख्यानं प्रदय विषयोपभोगेभ्यो जन्तून व्यावर्य (निव) मोक्षमार्गाय समर्थीकृतास्ते साधुभिस्तेषामेव संसारमोचकानां निदर्शनं कृतमिहस्कन्धे। तदनेन सम्बन्धेनाऽऽ वातस्य द्वितीयश्रुतस्कन्धसम्बन्धि प्रथमाध्ययनस्य प्रथम सत्रमाह-'सुयं में' इत्यादि। प्रारंभ किया जाता है । अत एव दोनों रकंधो का विषय समान ही है। अन्तर यही है कि प्रथम स्कंध में जिन विषयो का संक्षेप में प्रतिपादन है, उन्हीं का यहां विस्तार से निरूपण है। इस श्रुतस्कंध में सात अध्ययन हैं पुण्डरीक (१) क्रियास्थान (२) आहारपरिज्ञा (३) प्रत्याख्यान (४) अनगारश्रुत (५) आर्द्रक (६) और (७) नालन्दा। प्रथम श्रुतस्कंध-अध्ययन की अपेक्षा बड़ा होने से इस का नाम महाध्ययन भी है। इसका प्रथम अध्ययन पुण्डरीक नामक है। पुण्डरीक का अर्थ है कमल । कमल की उपमा देकर धर्म में रूचि उत्पन्न करने के लिए महान् पुरुषों का आख्यान दिखलाकर, जीवों को विषय भोगों से निवृत्त करके साधुओं ने उन्हें मोक्षमार्ग के लिए समर्थ बनाया। इस કરવામાં આવે છે. તેથી જ બન્ને મૃતકને વિષય સરખોજ છે. અંતર એજ છે કે-પહેલા શ્રતક ધમાં જે વિષનું સંક્ષેપથી પ્રતિપાદન કરેલ છે, તેનું જ અહિયાં વિસ્તાર પૂર્વક નિરૂપણ કરેલ છે. આ શ્રતસ્કંધમાં સાત અધ્યયન છે. તે આ પ્રમાણે સમજવા. પુંડરીક (१) छियास्थान (२) मा २ परिज्ञा (3) प्रत्याभ्यान (४) मना२श्रुत (५) भाद्र: (१) अने नासा (७) પહેલા શ્રુતસ્કંધ –અયનની અપેક્ષાથી મોટુ હેવ થી આનું નામ મહાધ્યયન પણ છે. આનું પહેલું અધ્યયન પંડરીક નામનું છે, પુંડરીકને અર્થ કમળ એ પ્રમાણે થાય છે. કમળની ઉપમા આપીને ધમમાં રૂચિ ઉત્પન્ન કરવા માટે મહાન પુરૂષનું આખ્યાન બતાવીને અને વિષય ભેગોથી નિવૃત્ત કરીને સાધુએાએ તેમને મેક્ષ માર્ગ માટે સમર્થ બનાવ્યા. श्री सूत्रतांग सूत्र : ४

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