Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
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Dear Dr. Chandraji,,
Many thanks for your letter No.288 dt. 22-5-92. I received the book "Prācina Ardhamāgadhi ki Khoja men' in due time. It is an excellent piece of research. It throws enough light on ancient Ardhamāgadhi language of the Jaina Scriptures. Is it possible for you to edit the 1st part of the Acārānga-sūtra applying the principles formulated in your book ? It will be a monumental work if done by you. Ladnun
-Nathmal Tatia 31-2-92
ધર્મલાભ, વિસ્તારથી પત્ર આજે મળ્યો. મારે અભ્યાસ કરવો પડશે. તમારા ઘણા ઘણા શ્રમ માટે ખૂબ ખૂબ અભિનંદન. કરો આચારાંગનું કામ હું ખૂબ રાજી છું. દેવગુરુકૃપાથી સુખસાતા છે. તમને પણ સદા હો.
આદરીયાણા, વિરમગામ, ગુજરાત
-यूविय २२-७-८२
(टन सामान विद्वान् संपा। मुनिश्री)
विद्वद्वर श्री के. आर. चन्द्रा, सादर धर्मलाभ,
...लेख देखा । सचमुच में यह बहुत उत्तम प्रयास है । हमारे आगमग्रन्थ की मूल भाषा व शब्दावली क्या थी, क्या होनी चाहिए, इस विषय को लेकर चल रहा यह अन्वेषण हमें अपने तीर्थंकरों की निजी बानी तक पहुँचा सकती है। मैं आपको धन्यवाद के साथ इस विषय को पूर्ण रूप देकर पूरे आचारांग (भाग १) के पाठ को इस ढंग से तैयार करने का अनुरोध करता हूँ।
महुवा (गुजरात)
- शीलचन्द्रविजय २२-१२-९२ (सूरिसम्राट श्री नेमिसूरीश्वरजी के समुदाय के विद्वान् मुनि श्री)
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