Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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૨૨૬
સંબોધસત્તરી ગા.૧૦૫/૧૦૬ सुब्बइ दुग्गयनारी, जगगुरुणो सिंदुवारकुसुमेहिं । पूआपणिहाणेणं, उप्पन्ना तियसलोगम्मि ।।१०५।।
- [पंचा.१९३] सुब्बइ - संभपाय छे. दुग्गयनारी - हुतानारी जगगुरुणो - भगवाननी सिंदुवार - सिन्हुवारन। कुसुमेहि - पुष्पो व पुआ - पून पणिहाणेणं - प्रशिधानथी. उप्पन्ना - उत्पन्न 25 तियस - हेव
लोगम्मि - शोभा छा.: श्रूयते दुर्गतानारी जगद्गुरोः सिन्दुवारकुसुमैः । पूजाप्रणिधानेन उत्पन्ना त्रिदशलोके ।।१०५।। અર્થ: (જિનપ્રવચનમાં) સંભળાય છે (ક) સિન્દુવારના પુષ્પોવડે ભગવાનની પૂજાના પ્રણિધાનથી દુર્ગાનારી विलोभ उत्पन्न २७. ।।१०५।।
तित्थयरत्तं सम्मत्त-खाइयं सत्तमीइ तईयाए । साहूण वंदणेणं, बद्धं च दसारसीहेणं ।।१०६।।
[श्रा.दि. ८२] तित्थयत्तं - तीर्थ:२५ सम्मत्तखाइयं - क्षायि सभ्यत्व सत्तमीइ - सातमीथी तइयाए - त्रीनु(मआयुष्य) साहूण - साधुमोना वंदणेण - वन बद्धं - जांध्यु
च - मने दसारसीहेणं - ६७१। मासे

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