Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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२४८
उवलद्धो जिणधम्मो, न य अणुचिण्णो पमायदोसेणं । हा जीव ! अप्पवेरिअ ! सुबहुं परओ विसूरिहिसि ॥५३॥ सोअंति ते वराया, पच्छा समुवट्ठियम्मि मरणम्मि। पावपमायवसेणं, न संचियो जेहिं जिणधम्मो ॥५४ ॥ धी धी धी संसारं, देवो मरिऊण जं तिरी होइ। मरिऊण रायराया, परिपच्चइ निरयजालाहिं ॥५५ ॥ जाइ अणाहो जीवो, दुमस्स पुष्पं व कम्मवायहओ। धणधन्नाहरणाई, घरसयणकुडुंब मिल्लेवि ॥५६ ॥ वसियं गिरीसु वसियं, दरीसु वसियं समुद्दमज्झम्मि । रुक्खग्गेसु य वसियं, संसारे संसरंतेणं ॥५७ ॥ देवो नेरइउत्ति य, कीडपयंगुत्ति माणुसो एसो। रूवस्सी य विरूवो, सुहभागी दुक्खभागी य ॥५८ ॥ राउत्ति य दमगुत्ति य, एस सवागुत्ति एस वेयविऊ। सामी दासो पुज्जो, खलोत्ति अधणो धणवइत्ति ॥५९ ॥ नवि इत्थ कोइ नियमो, सकम्मविणिविट्ठसरिसकयचिट्ठो। अनुन्नरूववेसो, नडुव्व परिअत्तए जीवो ॥६० ॥ नरएसु वेअणाओ, अणोवमाओ असायबहुलाओ। रे जीव ! तए पत्ता, अणंतखुत्तो बहुबिहाओ ॥६१ ॥

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