Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas

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Page 265
________________ રપ૬ सक्का अग्गी निवारेउं, वारिणा जलिओ वि हु। सव्वोदहिजलेणावि, कामग्गी दुन्निवारओ ॥८॥ विसमिव मुहम्मि महरा, परिणामनिकामदारुणा विसया। कालमणंतं भुत्ता, अज्ज वि मुत्तुं न किं जुत्ता ॥९॥ विसयरसासवमत्तो, जुत्ताजुत्तं न याणई जीवो। झूरइ कलुणं पच्छा, पत्तो नरयं महाघोरं ॥१०॥ जह निंबदुमुप्पन्नो, कीडो कडुअंपि मन्नए महुरं । तह सिद्धिसुहपरुक्खा, संसारदुहं सुहं बिंति ॥ ११ ॥ अथिराण चंचलाण य, खणमित्तसुहंकराण पावाणं । दुग्गइनिबंधणाणं, विरमसु एआण भोगाणं ॥१२॥ पत्ता य कामभोगा, सुरेसु असुरेसु तहय मणुएसु। न य तुज्झ जीव! तित्ती, जलणस्स व कट्ठनियरेण ॥१३॥ जहा य किंपागफला मणोरमा, रसेण वन्नेण य भुंजमाणा। ते खुड्डए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥१४॥ सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नट्ट विडंबणा।। सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥ १५ ॥ देविंदचक्कवट्टित्तणाइ रज्जाइ उत्तमा भोगा। पत्ता अणंतखुत्तो, न य हुं तित्तिं गओ तेहिं ॥ १६ ॥

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