Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas

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Page 267
________________ ૨૫૮ सव्वगहाणं पभवो, महागहो सव्वदोसपायट्टी । कामग्गहो दुरप्पा, जेणऽभिभूअं जगं सव्वं ॥ २५ ॥ जह कच्छुल्लो कच्छु, कंडुअमाणो दुहं मुणइ सुक्खं । मोहाउरा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं बिंति ॥ २६ ॥ सलं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । कामे य पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गइं ॥ २७ ॥ विसए अवइक्खता, पडंति संसारसायरे घोरे । विसएसु निराविक्खा, तरंति संसारकंतारे ॥ २८ ॥ छलिया अवइक्खता, निरावइक्खा गया अविग्घेणं । तम्हा पवयणसारे, निरावइक्खेण होअव्वं ॥ २९॥ विसयाविक्खो निवडइ, निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं । देवीदीवसमागय-भाउअजुअलेण दिट्टंतो ॥ ३० ॥ जं अइतिक्खं दुक्खं, जं च सुहं उत्तमं तिलोयम्मि । तं जाणसु विसयाणं, वुड्डक्खयहेउअं सव्वं ॥ ३१ ॥ इंदियविसयपसत्ता, पडंति संसारसायरे जीवा । पक्खि व्व छिन्नपंखा, सुसीलगुणपेहुणविहूणा ॥ ३२ ॥ न लहइ जहा लिहतो, मुहल्लिअं अद्विअं जहा सुणओ । सोसइ तालुअरसिअं, विलिहंतो मन्नए सुक्खं ॥ ३३ ॥

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