Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
View full book text
________________
ર૬૨
मयरहरो व जलेहि, तह वि हु दुप्पूरओ इमो आया। विसयामिसम्मि गिद्धो, भवे भवे वच्चइ न तित्तिं ॥६१॥ विसयविसट्टा जीवा, उब्भडरूवाइएसु विविहेसु। भवसयसहस्सदुलहं, न मुणंति गयंपि निअजम्मं ॥६२॥ चिटुंति विसयविवसा, मुत्तुं लज्जंपि के वि गयसंका। नगणंति के वि मरणं, विसयंकुससल्लिया जीवा ॥६३॥ विसयविसेणं जीवा, जिणधम्मं हारिऊण हा नरयं । वच्चंति जहा चित्तयनिवारिओ बंभदत्तनिवो ॥६४ ॥ धिद्धी ताण नराणं, जे जिणवयणामयंपि मुत्तूणं । चउगइविडंबणकर, पियंति विसयासवं घोरं ॥६५॥ मरणे वि दीणवयणं, माणधरा जे नरा न जंपंति । तेवि हु कुणंति लल्लिं, बालाणं नेहगहगहिला ॥६६ ॥ सक्कोवि नेव खंडइ, माहप्पमडुप्फुरं जए जेसिं। ते वि नरा नारीहिं, कराविआ निअयदासत्तं ॥६॥ जउनंदणो महप्पा, जिणभाया वयधरो चरमदेहो । रहनेमी राइमईरायमई कासी ही विसया ॥६८ ॥ मयणपवणेण जइ तारिसावि सुरसेलनिच्चला चलिया । ता पक्कयत्तसत्ताण, इयरसत्ताण का वत्ता ? ॥६९ ॥
मयण

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292