Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas

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Page 278
________________ ૨૬૯ ★ एवं णाऊण संसग्गिं, दंसणालावसंथवं । संवासं च हियाकंखी, सव्वोवाएहि वज्जए ।। १६ ।। ★ अह गिसई गलइ उअरं, अहवा पच्चुग्गलंति नयणाई | हा ! विसमा कज्जगई, अहिणा छच्छुदरिगहिआ ।। १७ ।। ★ को चक्कवट्टिरिद्धिं, चइउं दासत्तणं समभिलसइ । को वररयणाई मुत्तुं, परिगिण्हड़ उवलखंडाई ।। १८ ।। ★ नेरइयाण वि दुक्खं, जिज्झइ कालेण किं पुण नराणं । ता न चिरं तुह होई, दुक्खमिणं मा समुव्वियसु ।। १९ ।। वरमग्गिम्मि पवेसो, वरं विसुद्धेण कम्मणा मरणं । मा गहियव्वयभंगो, मा जीअं खलिअसीलस्स ।। २० ।। अरिहं देवो गुरुणो, सुसाहुणो जिणमयं मह पमाणं । इच्चाइ सुहो भावो, सम्मत्तं बिंति जगगुरुणो ।। २१ ।। लब्भइ सुरसामित्तं, लब्भड़ पहुअत्तणं न संदेहो । एगं नवरि न लब्भइ, दुल्लुहरयणं व सम्मत्तं ।। २२ ।। सम्मत्तम्मि उ लद्धे, विमाणवज्जं न बंधए आउं । जवि न सम्मत्तजढो, अहव न बद्धाउओ पुव्विं ।। २३ ।। दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवन्नस्स खंडियं एगो | इयरो पुण सामाइयं, करेड़ न पहुप्पए तस्स ।। २४ ।।

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