Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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૨૮૧
वरगंधपुप्फअक्खय, पईवफलधूवनीरपत्तेहिं । नेविजविहाणेण य, जिणपूआ अट्टहा भणिआ ।। १२२ ।। उवसमइ दुरियवग्गं, हरइ दुहं कुणइ सयलसुक्खाई । चिंताइयंपि फलं, साहइ पूआ जिणिंदाणं ॥ १२३ ।। *धन्नाणं विहिजोगो, विहिपक्खाराहगा सया धन्ना । विहिबहुमाणा धन्ना, विहिपक्खअदूसगा धन्ना ।। १२४ ।। संवेगमणो संबोह-सत्तरं जो पढेइ भव्वजीवो । सिरिजयसेहरठाणं, सो लहइ नत्थि संदेहो ।। १२५ ।। श्रीमन्नागपुरीयाह्व-तपोगणकजारुणाः । . ज्ञानपीयूषपूर्णाङ्गाः सूरीन्द्रा जयशेखराः ।। १ ।। तेषां पत्कजमधुपाः सूरयो रत्नशेखराः । सारसूत्रात् समृद्धृत्य चक्रुः संबोधसप्ततिम् ॥ २ ॥

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