Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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____ २६० विसयजलं मोहकलं, विलासविव्वीअजलयराइन्नं । मयमयरं उत्तिन्ना, तारुण्णमहन्नवं धीरा ॥४३॥ जइ वि परिचत्तसंगो, तवतणुअंगो तहावि परिवडई। महिलासंसग्गीए, कोसाभवणोसियमुणि व्व ॥४४ ॥ सव्वग्गंथविमुक्को, सीईभूओ पसंतचित्तो अ। जं पावइ मुत्तिसुहं, न चक्कवट्टी वि तं लहइ ॥४५॥ खेलम्मि पडिअमप्पं, जह न तरइ मच्छिआ विमोएउं। तह विसयखेलपडिअं, न तरइ अप्पंपि कामंधो ॥४६॥ जं लहइ वीयराओ, सुक्खं तं मुणइ सु च्चि य न अन्नो । न हि गत्तासूअरओ, जाणइ सुरलोइअं सुक्खं ॥४७॥ जं अज्जवि जीवाणं, विसएसु दुहासवेसु पडिबंधो। तं नज्जइ गुरुआण वि, अलंघणिज्जो महामोहो ॥४८॥ जे कामंधा जीवा, रमंति विसएसु ते विगयसंका। जे पुण जिणवयणरया, ते भीरू तेसु विरमंति ॥४९॥ असुइमुत्तमलपवाहरूवयं, वंतपित्तवसमज्जफोफसं। मेयमंसबहुहडकांडयं, चम्ममित्तपच्छाइयजुवइअंगयं ॥५०॥ मंसं इमं मुत्तपुरीसमीसं, सिंघाणखेलाइअनिज्झरंतं । एअंअणिच्चं किमिआण वासं, पासंनराणंमइबाहिराणं॥५१॥

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