Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas

View full book text
Previous | Next

Page 268
________________ ર૫૯ महिलाण कायसेवी, न लहइ किंचिवि सुहं तहा पुरिसो। सो मन्नए वराओ, सयकायपरिस्समं सुक्खं ॥ ३४ ॥ सुठुवि मग्गिज्जतो, कत्थवि कयलीइ नत्थि जह सारो। इंदियविसएसु तहा, नत्थि सुहं सुठ्ठ वि गविट्ठ ॥ ३५ ॥ सिंगारतरंगाए, विलासवेलाइ जुव्वणजलाए। के के जयम्मि पुरिसा, नारीनईए न बुड्डुति ॥ ३६ ॥ सोअसरी दुरिअदरी, कवडकुडी महिलिआ किलेसकरी । वइरविरोयणअरणी, दुहखाणी सुक्खपडिवक्खा ॥३७॥ अमुणिअमणपरिकम्मो, सम्मं को नाम नासिउं तरइ । वम्महसरपसरोहे, दिट्ठिच्छोहे मयच्छीणं ॥ ३८ ॥ परिहरसु तओ तासिं, दिढेि दिट्ठिविसस्स व अहिस्स। जं रमणीनयणबाणा, चरित्तपाणे विणासंति ॥ ३९ ॥ सिद्धंतजलहिपारं-गओ वि विजिइंदिओ वि सूरो वि। दढचित्तो वि छलिज्जइ, जुवइपिसाईहिं खुड्डाहिं ॥४०॥ मयणनवणीयविलओ, जह जायइ जलणसंनिहाणम्मि। तह रमणिसंनिहाणे, विद्दवइ मणो मुणीणंपि ॥४१॥ नीअंगमाहिं सुपयोहराहिं उप्पित्थमंथरगईहिं। महिलाहिं निमग्गाहिव, गिरिवरगुरुआवि भिज्जंति ॥४२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292