Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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२६3.
जिप्पंति सुहेणं चिय, हरिकरिसप्पाइणो महाकूरा। इक्कुच्चिय दुज्जेओ, कामो कयसिवसुहविरामो ॥ ७० ॥ विसमा विसयपिवासा, अणाइभवभावणाइ जीवाणं । अइदुज्जेआणि य इंदिआई तह चंचलं चित्तं ॥७१ ॥ कलमल-अरइ-अभुक्खा, वाहीदाहाइ विविहदुक्खाई। मरणं पिहु विरहाइसु, संपज्जइ कामतविआणं ॥७२॥ पंचिंदियविसयपसंगरेसि, मणवयणकाय नवि संवरेसि । तंवाहिसि कत्तिअगलपएसि,जंअट्टकम्म नवि निज्जरेसि ॥७३॥ किं तुमंधो सि किंवा सि धत्तूरिओ, अहव किं सन्निवाएण आऊरिओ। अमयसमधम्म जं विस व अवमन्नसे, विसयविसविसम अमियं व बहुमन्नसे ॥७४ ॥ तुज्ज तह नाणविन्नाणगुणडंबरो, जलणजालासु निवडंतु जिय निब्भरो । पयइवामेसु कामेसु जं रज्जसे, जेहि पुणपुण वि नरयानले पच्चसे ॥ ७५ ॥ दहइ गोसीससिरिखंड छारक्कए, छगलगहणट्ठमेरावणं विक्कए। कप्पतरु तोडि एरंड सो वावए, जु जि विसएहि मणुअत्तणं हारए ॥७६ ॥

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