Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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ર૬૬
मणवयणकायजोगा, सुनिअत्ता ते वि गुणकरा हुँति । अनिअत्ता पुण भंजंति, मत्तकरिणु व्व सीलवणं ।। ९५ ॥ जह जह दोसा विरमइ, जह जह विसएहिं होइ वेरग्गं । तह तह विनायव्वं, आसन्नं से अ परमपयं ॥ ९६ ॥ दुक्करमेएहिं कयं, जेहिं समत्थेहिं जुव्वणत्थेहिं। भग्गं इंदिअसिन्नं, धिइपायारं विलग्गेहिं ॥९७ ॥ ते धन्ना ताण नमो, दासोऽहं ताण संजमधराणं । अद्धच्छिपिच्छरिओ, जाण न हिअए खडुक्कंति ॥ ९८ ॥ किं बहुणा जइ वंछसि, जीव तुमं सासयं सुहं अरुअं। ता पिअसु विसयविमुहो, संवेगरसायणं निच्चं ॥९९ ॥

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